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अथर्ववेद में लिखा है :
मा जीवेभ्यः प्रमदः ॥ [प्राणियों के प्रति प्रमाद मत करो (लापर्वाह बनकर किसीकी हत्या मत करो)]
यजुर्वेद में लिखा है :
मा हिंस्यात् सर्वभूतानि ॥ [किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो
धम्मपद में लिखा है :
प्रत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये ।। [सब जीवों को अपनी प्रात्मा के समान मानकर न किसी का वध करो, न किसीसे करापो]
सूत्रकृतांगसूत्र में लिखा है :
सव्वे प्रकन्त दुषखा य अमो सव्वे अहिसिया ॥ [सब प्राणियों को दुःख अप्रिय लगता है; इसलिए किसीको मारना नहीं चाहिये]
इन समस्त धर्मशास्त्रों के उद्धरण एक स्वर से दयाका समर्थन कर रहे हैं।
एक महात्मा नदी के तट पर स्नान कर रहे थे । उन्हों ने देखा कि जल में एक बिच्छ छटपटा रहा है - जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है । महात्माने उसे बचाने के लिए हाथसे उठाया । बिच्छूने डंक मारा । वेदना से महात्माजी का हाथ काँप गया और बिच्छू छूटकर फिर जलमें गिर पड़ा । दुबारा उठाया । बिच्छूने फिर हाथको डंक मारा । फलस्वरूप वह दुबारा जलमें गिर पड़ा।
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