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तरीके में एक-एक दोष छोड़ने का आत्मा से बाहर निकालने का । इसलिए माला फिराने के दोनों तरीके ठीक हैं ।"
सम्राट् अकबर ने उनकी चर्चा से प्रभावित होकर श्री हीरविजयसूरिजी को " जगद्गुरु" का खिताब दिया था । सूरिजी ने अकबर से " जजियाकर" समाप्त करवा दिया था, जो हिन्दू बने रहने के लिए हिन्दुओं से वसूल किया जाता था और जिससे उस जमाने में चौदह करोड़ रुपये बादशाह के खजाने में नियमित रूप से पहुँचते थे ! गाय, बैल, भैंस और भैंसे की धर्म के नाम पर की जाने वाली हत्या (बलि) बन्द करवा दी थी ।
इन सब सफलताओं के मूल मैं आचार्यश्री का गम्भीर विशाल ज्ञान और चरित्र तो था ही, परन्तु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था उनका वाक्चातुर्य बोलने की चतुराई। जिसमें भी ऐसी चतुराई होती है, उसे मित्र बहुत आसानी से मिल जाते हैं ।
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