SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महत्त्व दिया जाता है और न सूरज को, जब कि ये दोनों हम सब के अनन्त उपकारी हैं।" __ अगले दिन सत्संग करते समय अकबर ने आचार्यजी से प्रश्न किया : "महाराज ! लोग कहते हैं कि गंगा और सूरज़ को जैनधर्म में महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता। क्या यह सच है ?" सम्राट् को बहकाने के लिए किये गये मिथ्यात्वीयों के कुप्रयास को विफल करते हुए आचार्यश्री ने उत्तर दिया : "जैनसाधु गंगा में पाँव नहीं धरते । क्या यह उसका सन्मान नहीं है ? सूर्य को अस्त होने पर खाना तो दूर-हम लोग पानी तक नहीं पीते ! क्या सूर्य की उपासना का दावा करने वाले ऐसा करते हैं ? फिर हम पर यह आरोप कैसा कि हम गंगा और सूरज को कोई महत्व नहीं देते ? नहाकर गंगा के जल को अपने शरीर के मैल से दूषित करने वाले गंगा का अधिक सम्मान करते हैं या उसके जलको न छकर उसकी पवित्रता को बनाये रखने वाले जैन मुनि ? आप ही सोचकर फैसला कीजिये !" फिर एक दिन पूछा : "धर्म कौन-सा अच्छा है ?" बोले : "जिससे आत्मा शुद्ध होती हो, वही धर्म अच्छा है।" फिर पूछा : "माला फिराते समय जैनधर्म में मनके अपनी ओर धुमाते हैं और इस्लाम में बाहर की ओर । इन दोनों में कौन-सा तरीका ठीक है ?" बोले : "जैनधर्म मैं एक-एक मनके द्वारा एक-एक गुण अपनी प्रात्मा में भरने का भाव रहता है और इस्लाम के For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy