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पंडित : "वह स्वर्ग में जाता है !''
मुनि : "तब तो आपके ही कथन के अनुसार मैं स्वर्ग में जाऊँगा और आप कहाँ जायँगे ? आप ही सोचें ।”
ऐसे ही एक दूसरे द्वषी पंडितने अपने शिष्य से कुछ दूरी से गुजर रहे जैन मुनि की ओर संकेत करके कहा : "इन साधुनों को देखने से पाप लगता है; क्योंकि ये कभी नहाते तक नहीं !"
मुनि ने निकट पहुँच कर धीरे से कहा : "भाई ! गाय कभी नहीं नहाती और भैंस पानी में ही पड़ी रहती है; परन्तु आप दोनों में से पूज्य किसे मानते हैं ? मन की स्वच्छता ही किसी को उत्तम बनाती है, शरीर की स्वच्छता नहीं।"
महाराणा भीमसिंहजी की श्रद्धा वैष्णव धर्म पर थी। उनके भंडारी केसरजी जैन धर्मावलम्बी थे।
एक दिन भरी सभा में उन्होंने पूछा : "केसरजी ! जैनों के देव बड़े होते हैं या वैष्णवों के ?"
चतुर केसरजी ने उत्तर दिया : “हुजूर ! मैं खड़ा हूँ और आप बैठे हैं।"
इसका आशय यह था कि वैष्णवों के देव खड़े रहते हैं मेरी तरह और जैनों के तीर्थकर बैठे रहते हैं आपकी तरह । यदि मेरी अपेक्षा सिंहासन पर बिराजमान आप बड़े हैं तो जैनों के देव भी निश्चय ही बड़े हैं। इस छोटे से तर्क पूर्ण उत्तर से महाराणा बहुत प्रसन्न हुए।
एक राजाने अपने मन्त्री से भरी सभा में पूछा : मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं उगते ?"
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