________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५८
जज : "तो इसे रख लीजिये अपने ही पास।"
मुल्ला : “धन्यवाद । मह मुर्गी आपकी ही थी। मैंने बापके पड़ोस में ही मकान किराये पर लिया है।"
जज मुल्ला का मुंह ताकता रह गया ।
एक वकील से मुल्ला ने कहा कि किसी की गाय मेरे खेत से दस रुपये के गेहूँ खा गई है, क्या करूँ।
वकील : "गाय के मालिक से दस रुपये माँग लो और यदि वह न दे तो कोर्ट में दावा कर दो।"
मुल्ला : "तो दीजिये दस रुपये आप मुझे, क्योंकि वह गाय आप ही की थी ?"
वकील ने बटुए से दसका नोट निकाल कर मुल्ला को दे दिया और सलाह की फीस के रूप में उससे वापिस तत्काल ले भी लिया !
इन तीनों उदाहरणों में चतुराई तो है, परन्तु उसका दुरुपयोग किया गया है। अब कुछ सदुपयोग के उदाहरण सुने :
- आद्य शंकराचार्य स्नान करके अपने आश्रम को लौट रहे थे कि मार्ग में एक भंगी से स्पर्श हो गया। वे क्रुद्ध होकर बोले : “यह क्या किया ? मेरे सद्यःस्नात शरीर को छूकर अपवित्र कर दिया ! अब मुझे दुबारा नहाने जाना पड़ेगा।"
भंगी : "आप सदा इस वाक्य को प्रमाणित करते रहते हैं
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्म व नापरः ॥ [ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है, दूसरा नहीं]
For Private And Personal Use Only