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पहनाई है । छोटे हाथने भी इसी नियम का अनुसरण करते हुए बड़ी उँगली और अँगूठे को छोड़कर छोटी उँगली को अँगूठी पहनाई है | जो छोटे का ध्यान रखता है, वही बड़ा है । बड़ों का बडप्पन छोटे के अस्तित्व पर ही निर्भर है, इसीलिए बड़े छोटों को देते हैं । "
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इस रूपक कथा का सन्देश यह है कि लेने वाला छोटा होता है— गौरवहीन होता है ।
एक बार बादशाह सिकन्दर किसी भारतीय साधु के पास गया । साधु परमात्मा के और अपने गुरु के अतिरिक्त और किसी के सामने नहीं झुकते ।
जब साधु, सिकन्दर के समीप आ जाने पर भी, खड़ा नहीं हुआ, बैठा ही रहा, तब उसने सोचा कि यह साधु शायद मुझे जानता नहीं होगा । उसने कड़क कर पूछा : "क्यों रे साधुड़े ! तू जानता है कि मैं कौन हूँ ?"
साधुने कहा : "आपको कौन नहीं जानता ? आप तो मेरे गुलामों के भी गुलाम हैं !
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चौंक कर सिकन्दर ने कहा : "अबे ! क्या बकता है तू ?" साधु : "मैं ठीक ही कह रहा हूँ । आप इन्द्रियों के गुलाम हैं और इन्द्रियाँ मेरी गुलाम है, इस प्रकार आप मेरे गुलामों के गुलाम हैं ।"
सिकन्दर निरुत्तर हो गया । फिर भी उसने कहा : "मैं आपकी क्या सेवा करूँ ? "
साधु : " सेवा करना चाहते हो तो मेरे सामने से हट जाओ, जिससे सूरज की किरणें मेरे शरीर तक पहुँच सकें । "
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