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मैनेजर : "नहीं महाराज ! ऐरण तो वर्षों से एक ही काम में आ रहा है ।"
विचार करने पर इससे दो निष्कर्ष सामने आते हैं । ऐरण की तरह जो सहिष्णु होता है, वह सिद्ध बनता है - उसका गौरव सुरक्षित रहता है । दूसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि हथौड़े की तरह दूसरों के हाथों में पड़कर जो प्रहार करते हैं, वे एक दिन फेंक दिये जाते हैं उनका गौरव नष्ट हो जाता है ।
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मेवाड़ का एक चारण पेट की आग को शान्त करने के लिए बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचा । वहाँ बादशाह को सलाम करने से पहले उसने अपने मस्तक से पगड़ी उतार कर बगल में दबा ली ।
अकबर ने ऐसा करते हुए उसे देख लिया। पूछा : "क्या आप नहीं समझते कि सलाम करने से पहले पगड़ी उतार कर आपने कितना बड़ा गुनाह किया है ?"
चारण : " समझता हूँ साहब ! लेकिन आदत से मज़बूर हूँ । यह पगड़ी महाराणा प्रताप की दी हुई है । जब वे भारी तकलीफें सह कर भी आपके सामने नहीं झुके तो उनकी दी हुई यह पगड़ी भला कैसे झुक सकती है ? हमारा सिर हमारे पेट का गुलाम है । जहाँ रोटी का टुकड़ा मिलता है, वहीं झुक जाता है ।"
यह सुनकर बादशाह इस बात से चकित हो गये कि एक साधारण चारण भी जिसके गौरव की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता है, वह महाराणा कितना महान् है !
महामना मदनमोहन मालवीय " बनारस हिन्दु यूनिव
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