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१३५ एक छोटा-सा काँटा पाँवको टिकने नहीं देता, छोटासा रजकण आँख में चुभता रहता है, छोटी - सी फुसी चैन छीन लेती है, छोटा - सा छिद्र जहाज को डुबो देता है, छोटीसी मार्मिक बात भयंकर कलह का कारण बन जाती है, छोटासा मच्छर नींद उड़ा देता है, छोटी-सी दरार बड़े-बड़े बाँधों और भवनों को तोड़ देती है; ठीक उसी प्रकार एक छोटा-सा दोष सारे गुणों को नष्ट कर देता है !
लाख गुनों को दोष इक कर देता बदनाम । खाने का खोती मजा कड़वी एक बदाम ॥ विदुरनीति में लिखा हैषड्दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधमालस्यं दीर्घसूत्रता ॥ [इस जगत् में कल्याण चाहने वाले पुरुषको ये छह दोष छोड़ देने चाहिये : (१) नींद, (२) ऊँघ, (३) डर, (४) गुस्सा, (५) आलस और (६) देर से काम करने का स्वभाव]
लोग अधिकतर अपने गुण देखते हैं और दूसरों के दोष; किन्तु उन्हें दूसरों के गुण और अपने दोष देखने चाहिये। क्योंकि दूसरों के गुण देखने से उन्हें अपनाने की प्रेरणा मिलती है और अपने में दोष देखने से उन्हें छोड़ने की। अपना दोष बहुत कम लोग देखते हैं। वृन्द कविने लिखा है:
सब देखे, पर आपनो दोष न देखे कोय । करे उजेरो वीप पै तरे अंधेरो होय ॥
क सब वस्तुओं पर रहने वाला अंधेरा मिटाता है; परन्तु अपने नीचे का अँधेरा उसे दिखाई नहीं देता।
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