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१३१ परन्तु बिल्ली पर उस मन्त्र का कोई असर नहीं हुआ। तोतेने तब लगातार मन्त्रपाठ शुरू कर दिया : "बिल्ली आये तो भाग जाना - बिल्ली आये तो भाग जाना"
बिल्ली ने उसे पंजे में पकड़ लिया, फिर भी तोता वही मन्त्र बोलता रहा । फिर वह उसे मुह में रख कर पेट में उतार गई।
बिल्ली और तोते की इस कथा का आशय है कि मन्त्र पाठ करने के लिए नहीं, जीवन बदलने के लिए होता है। उपदेश का आचरण ही लाभप्रद होता है; केवल श्रवण और उच्चारण से कुछ नहीं होता, जीवन में गुण उतरने चाहिये।
संस्कृत में एक लोकोक्ति है:
यथा नाम तथा गुणः ।। [जैसा नाम होता है, वैसा ही उसमें गुण होता है]
प्राचीनकाल में गुणों के अनुरूप नाम रखे जाते थेशान्तिनाथ, वर्धमान, सुमतिनाथ, युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन, दुःशासन आदि नाम उनके गुणों के अनुरूप हैं; परन्तु आजकल ऐसा नहीं पाया जाता।
एक गाँवमें किसी युवक का विवाह हुआ । युवक का नाम था, उनठनपाल । नई दुलहन को अपने पतिदेव का यह नाम पसंद नहीं आया। पड़ोसी उसे "ठनठनपाल की औरत" कह कर पुकारते थे। उसे यह नाम बहुत भद्दा लगता था।
उसने सास-ससुर से और पतिदेव से आग्रह किया कि इस नाम को बदल दें; परन्तु किसी ने उसके निवेदन और अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया। नाम बदलने की किसी ने अनुमति नहीं दी।
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