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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ प्रसन्न हुई और सेठ को ऐसी बुद्धिमती सेठानी पाकर विशेष गर्व का अनुभव होने लगा। जहाँ न पहूँचे रवि वहाँ पहुँचे सुकवि इस सूक्ति के अनुसार एक कवि को कंजूस में ही अधिक उदारता के दर्शन हुए ! वह कहता है : उदारचरितस्त्यागी याचितः कृपणोऽधिकः । एको धनं तत: प्राणान अन्य प्रारणांस्ततो धनम् ॥ [कंजूस से कुछ मांगा जाय तो वह दाता से भी अधिक उदार और त्यागी प्रमाणित होगा, क्योंकि दाता पहले धन और फिर प्राण देता है; परन्तु कृपण पहले प्राण दे देता है, फिर धन देता है !] प्यासा चातक पानी पाने की आशा में बार-बार बादलों को देखता, उनसे याचना करता, अपनी व्यथा सुनाता, गिड़गिड़ाता; परन्तु एक-एक करके बादल गर्जना करते हुए बिना पानी बरसाये ही आगे बढ़ जाते; कोई उसकी पोर ज़रा भी ध्यान नहीं देता-बिल्कुल नहीं पसीजता-एक बूद भी उसके लिये नहीं टपकता। यह सारा हलचाल देखकर किसी सहृदय कवि के हृदय में उस चातक के प्रति सहज ही सहानुभूति पैदा हो गई। उसने कहा : रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नेतादृशाः । केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरणीम् गर्जन्ति केचिद् वृथा यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ हे मित्र चातक ! सावधान मन से क्षणभर सुनो। आकाश में बहुत-से बादल रहते हैं। सब ऐसे (उदार) नहीं हैं । कुछ तो बरसातों के द्वारा धरती को गीला कर देते हैं और कुछ व्यर्थ ही गर्जना करते हैं; इसलिए तू जिस बादल को देखता For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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