________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६०
"अरे आलसी ! इतना सा काम क्या तू खुद नहीं कर सकता था, जो मुझे बुलाया ?"
दूसरे आदमी ने कहा : “आपने ठीक पहचाना भाई साहब ! यह आलसी ही है। थोडी देर पहले मेरे मह पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी। मैंने कहा कि जरा हाथ हिलाकर उड़ा दो तो इससे इतना भी नहीं बन सका । मानो यह भी आम निचोड़ने जैसी कोई कठिन बात हो, जिस में ज़ोर लगाना पड़े !"
पहले आदमी ने कहा : "इस की बातों में मत आइये भाई साहब ! यह तो मुझसे भी बड़ा आलसी है, अभी थोड़ी देर पहले एक कुत्ता मेरा मूह चाट रहा था। मैंने इस आदमी से कहा कि ज़रा मुंहसे धुत् धत् कह कर कुत्ते को भगा दीजिये; किन्तु इससे इतना-सा शब्द भी बोला न गया। मानो यह भी मक्खियाँ उड़ाने के लिए हाथ हिलाने जैसी कोई कठिन बात हो ?"
घुड़सवार आम उठाकर चलता बना । प्रकृति फल उन्हीं को देती है, जो पुरुषार्थ करते हैं । लेटे हुए आदमियोंकी तरह जो आलसी होते हैं, वे जीवनमें कभी उन्नति नहीं कर सकते। ऐसे व्यक्तियोंसे मित्र भी दूर रहना चाहते हैं । मित्र उन्हें मिलते हैं, जो कर्मठ होते हैं और उद्यम करने में तत्पर रहते हैं।
For Private And Personal Use Only