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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० जीवन दृष्टि इस कथन का ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रभाव उस व्यक्ति पर पड़ा कि वह सहसा उठ बैठा. उसकी सारी कमजोरी जाती रही. दौड़ के उसने सन्त के चरणों में प्रणाम किया. फिर कहा- “आपने पहले मेरी मृत्यु की भविष्यवाणी क्यों की थी ?” Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्त ने कहा - " वह भविष्यवाणी तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही की थी. बताओ, पिछले सात दिनों में तुमने कौन-कौन से पाप किये है? " व्यक्ति बोला- “महाराज ! पाप तो कुछ नहीं; केवल कृत पापों के प्रायश्चित और पश्चात्ताप में ही सात दिन निकल गये; परन्तु इसका मेरे प्रश्न से क्या सम्बन्ध है? मैंने तो आपकी प्रसन्नता का रहस्य पूछा था !” सन्त ने कहा- " मरण का स्मरण ही मेरी प्रसन्नता का रहस्य है. जिस प्रकार एक सप्ताह तक मरण का स्मरण रहने से तुमने निष्पाप जीवन विताया- निश्चिन्त और प्रसन्न रहे, उसी प्रकार जीवन भर हम मरण का स्मरण रखते हैं; इसलिए निष्पाप निश्चिन्त और प्रसन्न रहते हैं.” मनोवृति पर अंकुश आवश्यक : आपको भी यह सूत्र सदा ध्यान में रखना चाहिये कि एक दिन हम मरने वाले हैं. इससे मनोवृत्तियों पर अंकुश रहता है. एक बार आदिनाथ प्रभु ऋषभदेव ने भरत चक्रवर्ती की प्रशंसा समवसरण में की. एक सुनार को वह अनुचित लगी. - " वाप वेटे की प्रशंसा करता ही है. इसमें बड़ी बात घर आकर उसने पड़ोसियों से कहा क्या है? वे कहते थे कि भरत संसार में रहकर भी निर्लिप्त है; किन्तु यह असम्भव है. संसार में जैसे वे रहते हैं, वैसे हम भी रहते हैं. हम यदि निर्लिप्त नहीं हैं तो भरत निर्लिप्त कैसे रह सकते हैं?" गुप्तचरों से यह बात मन्त्री को मालुम हुई. उसने सोचा कि सुनार ने प्रभु ऋषभदेव की भी आलोचना की है और भरत चक्रवर्ती की भी. अतः उसे किसी तरह समझाकर उसका भ्रम दूर कर देना चाहिये. इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई. उसके अनुसार सुनार को बुलाकर उसके सामने तेल से भरा हुआ एक सोने का कटोरा रख दिया और कहा “यह कटोरा उठा कर तुम्हें नगर की मुख्य सड़क पर चलना है और उसी सड़क से लौट कर यहाँ आना है. इस वीच कटोरे से तेल की एक बूँद भी छलकनी नहीं चाहिये. हमारे दो सैनिक नंगी तलवारें हाथों में लेकर पीछे-पीछे चलते रहेंगे और कटोरे से यदि एक भी बूँद गिर गई तो तत्काल तुम्हारा मस्तक काटकर नीचे गिरा देंगे. यदि तुम विना एक भी बूँद छलकाये सकुशल राजमहल में लौट आये तो यह सोने का कटोरा स्वर्ण मुद्राओं से भर कर तुम्हें इनाम में दे दिया जायेगा.” सुनार भय और प्रलोभन से अभिभूत होकर चल पड़ा. तेल का कटोरा उसने अपनी दोनों For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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