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ध्यान और साधना
७९ यहीं छूट जायेगा) परलोक में अच्छे-बुरे कर्मों के साथ जीव अकेला ही जायेगा!]
जिस धन का संग्रह करने के लिए व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन बिता देता है, वह नश्वर है-जड़ है. चेतन आत्मा को उसकी गुलामी से दूर रहना चाहिये. मृत्यु संसार के क्षणिक पदार्थों से आत्मा को अलग कर देती है. जो मृत्यु को याद रखता है, वह प्रसन्न रहता है. कहा गया
यह जीवन की साधना, कभी न मन अवसन्न । खुद भी सदा प्रसन्न हो, जग को रखे प्रसन्न ।। जीवन साधक शोक में, कभी न फँसने पाय । उसकी संगति प्राप्त कर, रोता भी हँस जाय ।।
-“सत्येश्वर गीता” से प्रसन्नता परम गुण है : प्रसन्न रहने और प्रसन्न रखने वाले एक जीवनसाधक महाराष्ट्र में उत्पन्न हुए थे-सन्त एकनाथ. किसी व्यक्ति ने उनसे उनकी प्रसन्नता का रहस्य पूछा. इस पर सन्त एकनाथ ने कहा - "भाई! प्रश्न का उत्तर तो मैं वाद में देता रहूँगा; परन्तु अभी तो मैं तुम्हारे लिए एक भविष्यवाणी करना चाहता हूँ. भविष्यवाणी भी इतनी ही कि एक सप्ताह के बाद तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी."
यह सुनकर वह व्यक्ति घवराहट में पड़ गया. भागता हुआ सीधे अपना घर पहुँचा वहाँ बैठकर सोचने लगा कि किस-किसका कितना कर्ज चुकाना बाकी है. सूची बनाई और एक-एक व्यक्ति के पास जाकर उसकी राशि धन्यवाद सहित लौटा दी. जिन-जिन लोगों से लड़ाई-झगड़ा किया था-जिनका अपमान किया था-जिन्हें गालिया दी थीं, उन सवसे हाथ जोड़कर चरणों में प्रणाम करके क्षमायाचना कर ली. अपना दिल हल्का कर लिया. इस प्रक्रिया में छह दिन निकल गये,
सातवें दिन मृत्यु का स्वागत करने के लिाग निश्चिन्त होकर वह खाट पर लेटा था. सन्त की भविष्यवाणी पर उसे पूरा विश्वास था. आज रात को मैं सब कुछ छोड़कर परलोकवासी हो जाऊँगा-ऐसा सोचते हुए उसे ऐसा लगने लगा कि शरीर में धीरे-धीरे कमजोरी बढ़ती जा रही है. खाना-पीना सब छूट गया.
शाम को सन्त एकनाथ ने उस व्यक्ति के घर में प्रवेश किया. कमजोरी के कारण वह उठ नहीं पाया. लेटे-लेटे ही उसने सन्त को प्रणाम किया. सन्त ने उससे कहा
"भाई! तुम्हारे लिए एक अच्छी खवर लाया हूँ कि तुम कई वर्षों तक और जीने वाले हो. मृत्यु आज नहीं आने वाली है."
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