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ध्यान और साधना हथेलियों पर रख लिया. नजर वरावर तेल की सतह पर टिकी रही. सड़क पार करके वह फिर उसी सड़क पर से राजमहल लौट आया. मन्त्री ने उसका ध्यान कटोरे पर से हटाने के लिए स्थान-स्थान पर सड़क के दोनों और विविध नृत्य-गीतों के कार्यक्रम आयोजित किये थे; फिर भी सुनार नहीं फिसला. ___ मन्त्री से उसने इसका कारण पूछा. सुनार ने बताया - “मेरा पूरा ध्यान तेल की सतह पर ही केन्द्रित रहा; क्यों कि जरा-सी असावधानी पर मेरा मस्तक काट दिया जाने वाला था! इसलिए सड़क के दोनों और कहाँ कौन से कैसे कार्यक्रम हो रहे हैं- इस और मैंने विल्कुल ध्यान नहीं दिया."
मन्त्री ने कहा - "मरण का स्मरण रहने के कारण जिस प्रकार तुम्हारा ध्यान इधर-उधर नहीं गया. उसी प्रकार भरत चक्रवर्ती का भी ध्यान इधर-उधर नहीं जाता. वे प्रजापालन की जिम्मेदारी तो पूरी सावधानी से निभाते हैं, परन्तु मरण का स्मरण रहने से निष्पाप जीवन विताते हैं, संसार में रहकर भी विपय-भोगों से निर्लिप्त रहते हैं. प्रभु ऋषभदेव ने उनकी जो प्रशंसा की थी, वह यथार्थ थी."
सुनार का भ्रम मिट गया, प्रभु की आलोचना के लिए उसने क्षमायाचना की. मन्त्री ने स्वर्ण मुद्राओं से भरकर वह सोने का कटोरा उसे इनाम में देकर विदा किया.
मरण का स्मरण आसक्ति को विरक्ति में परिवर्तित करने की सामर्थ्य रखता है. हाथ में तेल लगा कर उसे पानी में डुवो दीजिये. फिर वाहर निकालकर देखिये. पानी की एक बूँद भी उस पर नहीं मिलेगी. पानी में रहकर भी हाथ निर्लिप्त रहा. उसी प्रकार विरक्ति का तेल मन पर लगाकर उसे संसार में छोड़ देने पर भी वह निर्लिप्त रहेगा.
दूध गरम करने पर भगोनी को चूल्हे से उतारने के लिए महिलाएँ संडसी का प्रयोग करती हैं. डायरेक्ट भगोनी को नहीं छती. संसार भी गरम भगोनी के समान है. उसे वैराग्य की संडसी के माध्यम से छूएँ. आपका कोई नुकसान नहीं होगा.
चमड़े की आँख से संसार दिखता है और मन की आँख से परमेश्वर. साधना के लिए मन की आँख खोलने की जरूरत है. वैराग्य से मन की आँख खुलेगी. मन की आँख खुलने पर परमात्मा प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेंगे. आप साधना से सिद्धी की ओर पहुँच जायेंगे.
एक वार भी यदि ध्यान में और साधना में प्रवेश हो जाय तो फिर पूर्णता में कोई कठिनाई नहीं रहती अमावस्या के वाद प्रतिपदा को भी घोर अन्धकार होता है - रात में, परन्तु बीज (द्वितीया) की रात में यदि छोटा-सा चांद भी प्रकट हो गया-आसमान में प्रविष्ट हो गया तो धीरे-धीरे स्वयं की पूर्णिमा का चन्द्र वन ज़ायगा. हम भी संसार की विषय वासना से बाहर निकलकर यदि परमात्मा की शरण में चल जायें-ध्यान और साधना में प्रविष्ट हो जायें तो स्वयं ही पूर्ण वन जायेंगे. प्रयास केवल प्रवेश के लिए करना है.
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