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ध्यान और साधना
यदि आप आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको बहुत कुछ सहना पड़ेगा. सहनशीलता के बिना किसी भी साधना में सफलता नहीं मिल सकती. सहनशीलता का सम्मान :
आज हमारे यहाँ सबसे बड़ी कमी इसी बात की है - सहिष्णुता जिसे हम तपस्या भी कह सकते हैं, हमारे पास विल्कुल नहीं है. धनार्जन के क्षेत्र में हम सहनशील बन जाते हैं; परन्तु धर्मार्जन के क्षेत्र में जरा भी सहनशीलता हमारे भीतर नहीं रहती, साधना के लिए सहनशीलता, धीरज, शान्ति, दृढ़ता आदि गुणों की अत्यन्त आवश्यकता रहती है.
दिल्ली में गणतन्त्र दिवस पर महामहिम राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे झंडे को सलामी दे रहे थे. वहीं सामने राष्ट्रपति भवन में दरवाजों पर खिड़कियों पर पर्दे लगे हुए थे. वे कश्मीर से लाये गये थे. बहुत कीमती थे. उनमें से एक पर्दा सहसा सिसकियां भर-भर कर रोने लगा. किसी कवि की नजर उस पर पड़ गई. सहानुभूति-पूर्वक कवि ने उस पर्दे से रोने का कारण पूछा पर्दे ने कवि से कहा- “दुनिया का अन्धेर देखकर मुझे रुलाई आ रही है." कवि ने पूछा - "तुमने कौनसा अन्धेर अभी देखा? जरा स्पष्ट समझा कर कहो." पर्दे ने कहा – “एक छोटा-सा खद्दर का टुकड़ा, जिसमें कोई सुन्दरता नहीं-कोई कला नहींकोई मजबूती नहीं-कोई विशेषता उसमें नहीं, फिर भी सवसे ऊपर लहरा रहा है. राष्ट्रपति जैसा राष्ट्र का सर्वोच्च अधिकारी भी उसे सलामी दे रहा है-सारी सेना उसका सम्मान कर रही है. वड़े-बड़े नेता और प्रमुख नागरिक उसके सामने सिर झुकाकर उसकी सुरक्षा के लिए प्रतिज्ञा कर रहे हैं. इधर मेरी हालत देखिये. मैं सुन्दर हूँ. मजबूत हूँ - मूल्यवान् हूँ; फिर भी यहाँ लटक रहा हूँ. दिन में तीन बार चपरासी आता है और मेरा कान पकड़कर इधर से उधर, उधर से इधर सरका जाता है. कितनी ग्रेट इन्सल्ट मेरी यहाँ की जाती है? आज तक मुझे कोई सलामी देने सन्मान देने वाला नहीं मिला."
पर्दे की व्यथा कथा सुनकर कवि ने शान्ति से समझायाः -- “पर्दे भाई! यह खद्दर का टुकड़ा साधारण कपड़ा नहीं है, राष्ट्रध्वज होने से पूरे राष्ट्र का प्रतीक है. दूसरे राष्ट्र भी इस झंडे को भारत समझ कर सन्मानित करते हैं. यह असल में उसकी साधना का सम्मान है. मई और जून महिने की भयंकर गर्मी में वह प्रसन्नता से लहराता है, जुलाई और अगस्त की तूफानी वरसात में भी वह मुस्कुराता रहता है. दिसम्बर-जनवरी की कड़कड़ाती ठंड से भी वह नहीं घबराता, उसमें कैसी सहन-शीलता है? कितनी तपस्या है? यही सब देखकर साधारण नागरिक से राष्ट्रपति तक सभी उसका सन्मान करते हैं.
उसकी तुलना में तुम्हारी साधना कैसी है? करोड़ों रुपयों की लागत से बने हुए भव्य राष्ट्रपति भवन में तुम रहते हो, ठंड हो, गर्मी हो या वरसात तुम पर किसी मौसम का कोई प्रभाव नहीं
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