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जीवन दृष्टि या दर्द हमारे अन्दर नहीं. कहाँ से वह आत्मा उद्धार प्राप्त करेगी.
मेरा भी यही कहना था कि रूदन भी एक साधना है. एक अपूर्व कला है और रोना कहाँ ? वही मैं समझा रहा हूँ. धर्म के वियोग में आत्मा में रूदन पैदा होना चाहिये. आत्मवेदना के
आँसू निकलने चाहिये. आत्म पश्चाताप के आँसुओं से आत्मा का प्रक्षालन करना चाहिये. कभी भगवान के द्वार पर रूदन लेकर नहीं गये और गये होते तो आज हमारी यह स्थिति नहीं रहती. रूदन का आकर्षण बहुत बड़ा आकर्षण बनता है. रूदन अन्तर आत्मा को, हृदय को स्वच्छ करने का कारण बनता है. परन्तु संसार के लिए रूदन हुआ पर आत्मा के लिए नहीं.
एक चीज मैं आपसे पूछ लूं - चातुर्मास का इतना महत्व क्यों रखा गया. कुछ इसके भी कारण हैं और इसलिए विशेष नियम चातुर्मास के लिए रखे गये हैं. सर्व प्रथम यदि कोई व्यक्ति गणित का जानकार हो, मैं उससे एक प्रश्न करूं - बारह में से चार गये पीछे शेष कितना निकलता है. यह आध्यात्मिक गणित है, आपका व्यावहारिक गणित नहीं कि झट से कह दे - बारह में से चार गये तो आठ रहा. हमारे यहाँ यह कहा जायेगा - बारह में से चार गये तो बचा शून्य. यदि चार महिनों में आपने धर्म की खेती नहीं की तो फिर आत्मा के लिए भोजन कहाँ से मिलेगा? उस आत्मा का पोषण किस प्रकार होगा? अकाल में तो मृत्यु आती है. इसी तरह से अन्दर का दुष्काल, वह अन्तर आत्मा की साधना में मृत्यु उपस्थित करेगा. इसलिए इन चार महिनों का बड़ा महत्व रखा गया है. इनको खेती बाड़ी का समय माना गया कि अन्तर-मन के अंदर ऐसी सुन्दर धर्म की खेती मैं करूं कि वह मोक्ष का फल देने वाली, आत्मा के लिए भोजन प्रदान करने वाली, अन्तर आत्मा को तृप्त करने वाली वने. कर्तव्य ही धर्म है :
धर्म क्या है? किसे धर्म कहना और किसे धर्म स्वीकार करना? धर्म शब्द का अर्थ मैं आपको स्पष्ट कर दूं. धर्म शब्द का अर्थ है - व्यावहारिक दृष्टि से अपने जीवन का एक सद् व्यवहार
और एक कर्तव्य. जिस माता पिता के द्वारा आपका जन्म हुआ, उनके प्रति आपका नैतिक कर्तव्य क्या होना चाहिये? जिस भूमि, जिस गांव और जिस राष्ट्र में आपका जन्म हुआ, उसके प्रति आपका नैतिक कर्तव्य क्या होना चाहिये, आपका आचरण किस प्रकार होना चाहिये? जिस समाज के अंदर आपका आगमन हुआ, उस समाज के प्रति आपका क्या कर्तव्य है? जो आपके परिवार के लोग है, उनके प्रति आपका क्या कर्तव्य है? इन सभी प्रकार के कर्तव्यों को यहाँ धर्म के रुप में स्वीकार किया गया है, क्योंकि जीवन के संपूर्ण परिचय का समावेश धर्म शब्द के अन्तर्गत किया गया है.
तो धर्म की व्याख्या, यह वहुत बडी व्यापक है. मेरा सम्पूर्ण जीवन व्यवहार धर्ममय बन जाय. प्रभु महावीर की भाषा में यदि कहा जाये तो - एक शिष्य ने उनसे संसार की समस्याओं
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