SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म समझने की है. धर्म बिन्दु ग्रन्थ के अन्दर अन्तर शुद्धि के उपाय बतलाये गये हैं कि किस प्रकार अन्तर आत्मा की शुद्धि को प्राप्त करना है. मैत्री धर्म का जन्म स्थान आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने धर्म बिन्दु ग्रन्थ में स्पष्ट कर दिया कि धर्म का जन्म कहाँ से होता है? धर्म का प्रारम्भ कहाँ से किया जा सकता हैं उन्होंने ग्रन्थ के माध्यम से वतलाया कि मैत्री ही धर्म का जन्म स्थान है. इसका दूसरा रुप होता है - प्रेम. प्रेम के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचने के लिए वो प्रेम की गली इतनी छोटी है कि इस रास्ते में आप स्वयं तो जा सकते हैं, अपने मित्र और परिवार को साथ में नहीं ले जा सकते हैं. प्रेम का परम तत्व कैसे प्राप्त करना है. हर जगह जैन दर्शन की यही अपूर्व विशेषता है कि हर जगह मैत्री का परिचय दिया. हम जो प्रवचन की मंगल क्रिया करते है, उस क्रिया के अन्दर उसके प्राणतत्व का परिचय दिया, वो प्रतिक्रमण का सार मैत्री है. हम प्रतिदिन परमेश्वर की साक्षी में यह निवेदन करते है “मित्ती में सव्व भुऐसु, वेरं मज्जं न केणइ.” भगवन् प्राणी मात्र के साथ मेरा मैत्री सम्बन्ध है. किसी के साथ कोई वैर नहीं. यही मैत्री भाव आगे चलकर परमात्मा तक पहुंचायेगा. धर्म भावना को वही से उत्पन्न करेगा. मैत्री आत्मा के साथ होनी चाहिये. पर वो आज है कहाँ? आप रोज घर में दूध गर्म करते हैं. पानी और दूध की मैत्री को आप जानते हैं. आप दूध गर्म करते हैं तो पानी दूध के रक्षण के लिए अपना बलिदान करता है. पहले पानी का अन्त होता है और जैसे ही पानी का वियोग होता है कि दूध का हृदय उबलता है - मेरे मित्र से वियोग कराने वाला कौन? मेरे मित्र का नाश करने वाला कौन? मैं अपने मित्र के लिए अपने जीवन का नाश कर दूं, बलिदान कर दूं. दूध उफनता है, आवेश में आता है. यदि उसे नहीं संभाला जाता है तो अपना भोग देकर के उस चूल्हे को बुझा देता है. कैसी अपूर्ण मैत्री. पर जव होशियार व्यक्ति देख लेता है कि दूध गर्म हो रहा है. उवाल आने की तैयारी है और चूल्हे से उतारने का कोई साधन नहीं मिलता तो क्या करता है? जरा सा पानी लिया, लेकर जैसे ही दूध पर डाल देता है तो दूध शांत हो जाता है. मित्र की प्राप्ति में सारा गुस्सा ही ठंडा हो जाता है. उसी प्रकार धर्म के वियोग में अनन्त आत्मा की यह स्थिति होनी चाहिये. यह धर्म का वियोग आप में आज तक दर्द पैदा नहीं कर सका. कई वार मैं आप से कहूँ - पैसा गया तो रोये. संसार का किसी प्रकार का वियोग हुआ तो अपनी अन्तर आत्मा में रूदन पैदा कर दिया - दर्द पैदा हुआ. और मैं कहता हूँ आत्मा से जब धर्म का वियोग पैदा हुआ तो उस समय कोई पश्चात्ताप हुआ है? कभी अन्तर्हृदय में उसका रूदन पैदा हुआ है कि मेरी आत्मा का धर्म से वियोग हो गया? आज मेरी आत्मा की यह स्थिति कैसी हो गयी. उसका कोई दुख For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy