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मंगल प्रवचन से जीवन की पूर्णता है और इस वर्तुल की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी है, ताकि भविष्य के अंदर फिर मृत्यु का आक्रमण मेरे जीवन पर न हो. मृत्यु का मुझे विसर्जन कर देना है, वही कामना लेकर हम प्रतिदिन परमेश्वर के पास जाते हैं कि मुझे अपने जीवन का सम्राट बनना है, मुझे अपने जीवन के अंदर मृत्यु का विसर्जन कर देना है, यही पूजा के अन्तिम समय अपनी प्रार्थना होती है कि - भगवन्, तेरे पुण्य प्रभाव से तेरे वतलाये हुए आराधना के सशक्त रास्ते से एक प्रार्थना लेकर आया हूँ.
“जन्म जरा मृत्य निवारणाय” तेरी आराधना से मैं अपने जन्म का ही नाश कर डालूं क्योंकि जन्म ही मृत्यु का परित्याग है. जन्म का नाश, जरा अवस्था का नाश और सदा के लिए मृत्यु का विसर्जन हो जाय, यही मेरी कामना है, यही मेरा मोक्ष है.
रेगिस्तान के अंदर बहुत तेज गर्मी पड़ती हो, और वैशाख जेठ का महिना हो, वहाँ पर २-४ किलो वर्फ को रखकर आप आ गये तो उस दोपहर की भयंकर गर्मी में उसका अस्तित्व कहाँ तक रहेगा. इसी तरह संसारी जीवन के ताप से जीवन प्रतिक्षण पिघल रहा है. एक दिन संसार में उसका अस्तित्व भी नहीं रहेगा. पानी के अंदर यदि बताशा रख दिया जाय तो कहाँ तक वह रहेगा. वह घुल जायेगा.
श्रवण धर्मिता : प्रवचन आरोग्य पथ्य हैं. Devine Medicine है. इसके द्वारा गुरुजन धर्म का भाव अमृत पान कराते है. हर श्रोता की अपनी अपनी श्रवण ग्राह्यता होती है. कुछ श्रोता दिखाने के तौर पर रस्म अदायगी करने हेतु प्रवचन में आते हैं तो कुछ परम जिज्ञासु श्रोता भी होते हैं जो चाहते हैं कि जिन शब्दों में असीम आत्म वेदना का पश्चाताप हो, मुझे वे ही शब्द चाहिये. कुछ रसिक श्रोता चाहते हैं कि वाणी का व्यापार उनकी धर्म साधना का प्रतीक बन जाये. ऐसे श्रोता ही प्रवचन का सही आनन्द ले सकते हैं.
वम्बई के एक ख्याति प्राप्त सोलिसीटर मिस्टर एन. आर. कांटेवाला मेरे वालकेश्वर चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन प्रवचन श्रवण हेतु आते थे. एक दिन उन्होंने कहा - महाराज, मैं प्रतिदिन प्रवचन का लाभ लेता हूँ. किन्तु श्रवण प्यास नहीं बुझती.
मैंने कहा - वकील साहव, इस वालकेश्वर क्षेत्र में बहुमंजिली इमारतें हैं और ऊपर एक ओवर हेड टैंक है जिसमें प्रतिदिन एक घण्टा पानी रिप्रेशर करके ऊपर वाले टैंक को लवालब भर दिया जाता है. यह टैंक इमारत के सभी घरों को शेष २३ घण्टे पानी देता है. इसी प्रकार मेरे एक घण्टे के प्रातःकालीन प्रवचन रूपी रिप्रेशर से सुश्रावकों का मस्तिष्क रूपी ओवर हेड टैंक धर्म भाव के जल से भर जाता है. अव यदि इन्सान रूपी इमारत की पाईप लाईन यानि कान-मुख आदि छिद्रों से लीकेज होता हो तो मस्तिष्क रुपी ओवर हेड टैंक भरेगा नहीं, इसलिए आपकी प्यास अधूरी रहती है, अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रवचन रूपी
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