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जीवन दृष्टि यह मेरे पूर्वजो की बनाई हुई कोठी हैं. कभी था मेरे पास परन्तु अव कुछ नहीं रहा सिर्फ यह कोठी रही तो मैंने देखा, पहले इस कोठी में ही प्रयोग किया जाये संन्यासी ने कहा - जरा लालटेन लो और झांक कर देखो, यह पत्थर कहाँ पड़ा है?
मफतलाल ने लालटेन लेकर के अन्दर झांका और देखा दुनिया भर का कचरा अन्दर पड़ा हुआ है. लोहे के अन्दर न जाने कव की जंग चढी हुई है और वह पत्थर वीच में ही अटका पड़ा है कोठी से कोई स्पर्श ही नहीं. पारस पत्थर का लोहे के साथ कोई स्पर्श ही नहीं तो प्रयोग कहाँ से होगा. मफतलाल ने कहा - वह पत्थर बीच में ही अटका है, कचरे के अंदर पड़ा है. संन्यासी ने कहा - मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था- तुम्हारा प्रयोग गलत होगा. ये तुम्हारी मूर्खता है. भूल तुम करो और सजा मुझे मिले, पहले कोठी को साफ करो. कोठी का कचरा वाहर निकालो. मफतलाल ने वैसा ही किया. सारा कचरा बाहर निकाल डाला. कोठी में चमक पैदा हुई तो संन्यासी ने कहा - अव प्रयोग करो. जैसे ही पत्थर डाला, उसका स्पर्श हुआ, तुरन्त रुपान्तर हुआ. सारी कोठी सोने की वन गई.
तो मैंने भी कहा उस प्रश्न करने वाले से-मुझे परमात्मा के शब्दो में परिपूर्ण विश्वास है. परमात्मा के शब्द पारस पत्थर जैसे मूल्यवान और जीवन का परिवर्तन, रुपान्तर करने वाले हैं. ये शब्द प्रतिदिन आप तक प्रवचन के माध्यम से पहुंचाया जाता है. अन्तर इतना ही है, आपका जो पात्र है, यह जो मन की कोठी है, वह वहुत गंदी और सड़ी हुई है. न जाने कब से कितने भव का कचरा इसमें पड़ा है.
कल आप भी अपने मन की इस कोठी को साफ करके आयें और जव ये मन की कोठी को आप साफ और स्वच्छ कर देंगे तथा इसमें जो जंग लगी हुई है उसे आप निकाल देंगे तो यह जीवन स्वर्ग जैसा मूल्यवान बन जायेगा, परोपकारी बन जायेगा. अनेक आत्माओं को शान्ति देने वाला ये जीवन बन जायेगा. इस जीवन का मूल्यांकन वहुत सुन्दर हो जायेगा. मंगल प्रवचन से जीवन की पूर्णता : किस प्रकार स्वयं के वर्तुल के अन्दर स्वयं की उपस्थिति प्राप्त हो, किस प्रकार विचार की भूमिका पर सुन्दर साधना की सफलता प्राप्त हो, किस प्रकार अपने जीवन के अन्दर सभ्यता का आचरण सक्रिय बने, ये सारी जानकारी उसका सम्पूर्ण मार्गदर्शन परमात्मा के मंगल प्रवचन द्वारा प्राप्त करना है. प्रवचन के द्वारा सुषुप्त चेतना को जागृत करना है. जिनेश्वर भगवन्त के उस मंगल प्रवचन द्वारा हृदय की पवित्रता, इस जीवन की पूर्णता पुनः प्राप्त कर लेनी है जो अब तक सुषुप्त अवस्था में प्राप्त नहीं की. जिनेश्वर भगवन्त ने अपने अंतिम समय में, मंगल प्रवचन के अंदर मृत्यु के माध्यम से जीवन का परिचय दिया. उन्होंने कहा-सारा ही जीवन मृत्यु के वर्तुल पर उपस्थित है. न जाने कव मेरे जीवन पर मौत का आक्रमण हो जाये. जाने से पहले मुझे अपना कार्य परिपूर्ण कर लेना
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