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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० उसका दर्द भूलकर मृत्यु को ही संगीत बना लिया. जटायु ने सीता हरण के समय अपना जीवन अर्पण कर दिया. उसे मालूम था कि मैं सीता को बचाने में सफल नहीं हो सकता. पर किसी प्रकार मैं रावण को रोकूं, उसके कार्य में बाधा उत्पन्न करूं. जीवन दृष्टि परिणाम क्या रहा? रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिये. परन्तु जटायु खुश था, उसे मृत्यु में भी प्रसन्नता नजर आ रही थी कि मैंने सत्कार्य के लिए अपना जीवन अर्पण किया है. हमारे जीवन में जिस दिन यह भावना आ जाय, कि परमात्मा के कार्य के लिए मैं अपना सर्वस्व अर्पण कर दूं, अपना जीवन अर्पण कर दूं. यह भाव ही पुण्यभाव बन जाता है जो परमात्मा की प्राप्ति में कारण बनता है. व्रत नियम का पुण्य प्रभाव : हमारे जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो, इसके लिए जीवन के दैनिक व्यवहार में कुछ ऐसे नियम धारण करे जो हमें अनीति के मार्ग पर जाने से रोके पाप के दलदल में धंसने से बचाये. व्रत नियमों का ऐसा पुण्य प्रभाव होता है जो हमारे जीवन में बदलाव भी ला सकता है. सेठ मफतलाल रोज प्रवचन सुनने जाते थे. महाराज प्रतिदिन प्रेरणा देते थे और व्रत नियम लेने का आग्रह करते. मफतलाल व्रत नियमों से कोसों दूर भागते थे. एक दिन महाराज से कहा- आपने मेरे को ही क्यों टारगेट बनाया है. ये क्या उपदेश मेरे लिए ही है ? और कोई नहीं मिला. महाराज ने कहा- तुम्हारे उपर मेरा विशेष अनुराग है. साधु सन्तों के अन्तर में ऐसी करूणा होती है कि जो आध्यात्मिक रूप से सीरियस पेशेन्ट हो उसी का मैं पहले रक्षण करूं. मफतलाल ने कहा- भगवन्, मैंने तो बहुत व्रत नियम ले रखे हैं. आप और कितने नियम देंगे. सुबह उठता हूँ, पहले बीड़ी पीता हूँ, ये मेरा पहला नियम. दूसरा नियम-पान खाता हूँ. तुरन्त चाय पीता हूँ, ये तीसरा नियम फिर बाजार जाता हूँ ये चौथा नियाम. सारा जीवन ही इस तरह नियमों से जकड़ा है. अब आप कहाँ और नियमों का जंगल पैदा कर रहे हैं. महाराज ने कहा- फिर भी प्रयास करो ये मेरा आग्रह है, चार महिना निकल गया, पर मफतलाल नहीं माने. परन्तु महाराज की करूणा ऐसी कि मैं इसको कुछ नियम देकर जाऊं. For Private And Personal Use Only आखिर जाते-जाते विहार करते समय महाराज ने कहा- भले आदमी, चार महिने पुरे हो गये. अब तो जाते जाते मेरी गुरूदक्षिणा तो दे दो. कम से कम अपने मन की प्रसन्नता तो लेकर जाऊं. मफतलाल ने कहा- महाराज आपने तो बहुत प्रयास किया. मेरा ही पुण्य बल कम था कि
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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