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जीवन व्यवहार परमात्मा की खोज :
सेठ मफतलाल राजा के परम मित्र थे. राजा के महल में ही रहते थे. एक दिन राजा ने पूछ लिया- मैं बहुत दिनों से साधना में परमात्मा की खोज में लगा हूँ. परन्तु मुझे कहीं परमात्मा ही नजर नहीं आया.
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मफतलाल सेठ बड़े बुद्धिशाली थे. उन्होंने कहा- आपके खोज का तरीका ही गलत है. राजमहल में रहकर कोई परमात्मा की खोज हो सकती है? यह कोई खोजने का तरीका है ? मफतलाल ने सोचा- राजा को सही रास्ता दिखाना चाहिए. दो चार दिन बात रात्रि के ग्यारह बजे सेठ मफतलाल राजमहल आये. सीधे छत पर चढ़ गये. लालटेन लेकर कुछ खोजने लग गये. राजा ने सोचा, ये मफतलाल रात्रि में क्या खोज रहा है. जाकर उससे पूछा- मफतलाल यहाँ क्या ढूंढ रहे हो ?
मेरे घर से ऊँट चला गया है, खो गया है, वही खोज रहा हूँ. मफतलाल ने उत्तर दिया. अरे मूर्ख आदमी ! राजमहल की छत पर कहीं ऊँट मिलेगा.
मफतलाल ने जवाब तैयार ही रखा था- हुजूर आप भी तो परमात्मा को यही खोज रहे हैं. वो तो बहुत बड़े हैं. मैं तो अपना ऊँट ही खोज रहा हूँ. जब यहाँ ऊँट ही नहीं मिल सकता तो यहाँ इस राजमहल में परमात्मा कहाँ से मिलेगा.
मृत्यु में ही जीवन है
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राजा विचार में पड़ गया- बात तो इसने सही कही है. जो चीज त्याग के माध्यम से मिलने वाली है, वह प्राप्ति में कहाँ से मिलेगी.
तो परमात्मा को खोजने का हमारा तरीका ही गलत है त्याग की भूमिका पर साधना करें तभी परमात्मा को खोजने में सफलता मिलेगी.
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मृत्यु एक शाश्वत सत्य है. जन्म के साथ ही मृत्यु की गाड़ी दौड़नी शुरू हो जाती है और जीवन को लक्ष्य तक पहुंचाने के बाद ही छोड़ती है. रवीन्द्र नाथ टैगोर ने विश्व प्रसिद्ध काव्य गीताजंली, जिस पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला, में मृत्यु को संबोधित करते हुए लिखा- आओ ? तुम बड़ी प्रसन्नता से आओ. मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ. बहुत वर्षों से मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में मैं था. परन्तु याद रखना! इस रवीन्द्रनाथ के यहाँ से कोई निराश नहीं गया. आज तक कोई खाली नहीं गया. आने वाले अतिथि को कुछ न कुछ देकर ही भेजा है. अब मेरे पास कुछ नहीं बचा है. अब तुम अपनी खाली झोली लेकर आये हो तो मैंने सोचा, अपना ये जीवन ही तुम्हें अर्पण कर दूं.
मृत्यु को इतनी शान्ति के साथ उन्होंने देखा, उसको अपने जीवन में अनुभव किया और