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जीवन दृष्टि घर जा कर सर आशुतोष ने अपनी माँ से कहा - माँ! भारत के वायसराय ने मुझे इंग्लैण्ड जाने का निमन्त्रण दिया है ताकि वहाँ की शिक्षा पद्धति का अध्ययन कर यहाँ उसे शुरू कर सके. माँ ने जवाब दिया- बेटा विदेश जा कर तू अपना संस्कार खोना चाहता है. यहाँ क्या कमी है. भारत में वेद है, उपनिषद है, बहुत कुछ है हमारे पास. यह देश सारी दुनिया को शिक्षा देता था और तू यहाँ से भिखारी बन कर जायेगा. देश का अपमान करेगा. मेरी इच्छा है कि तुझे विदेश नहीं जाना है.
सर आशुतोष ने माँ की चरण वन्दना की-माँ जैसी तेरी इच्छा, वही मेरी इच्छा. दूसरे दिन सर आशुतोष वायसराय के पास गये. साथ में कोंसिल के मेम्वर व युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पद के इस्तीफा लिख कर ले गये. वायसराय से जाकर सर आशुतोष ने निवेदन किया- सर मुझे क्षमा करें. मैं आपकी आज्ञा का पालन करने में असमर्थ हूँ. मेरी माँ की आज्ञा सर्वोपरि है, बिना उनकी अनुमति के मैं नहीं जा सकता और शायद यह आपको वुरा लगेगा, इसलिए मैं अपना इस्तीफा लिख कर लाया हूँ.
वायसराय स्तब्ध रह गये. उन्होंने जैसा भारत के बारे में सुना था, वैसा ही उसे पाया. वायसराय ने सर आशुतोष का इस्तीफा फाड़ दिया और कहा- धन्यवाद है इस भूमि को, जहाँ ऐसे नर रत्न पैदा होते हैं. हमारे देश में ऐसे पुत्रों का दुष्काल है. भारतीय संस्कृति और उनकी परम्परा का मैं स्वागत करता हूँ. ये शब्द लार्ड कर्जन के है. यम नियम का अनुशासन : नदी के मन में एक मनोविकार आया, कवि की कल्पना में. मैं इतनी पवित्र हूँ कि सारा जगत मेरे अन्दर आकर स्नान करता है. परम शुद्धि प्राप्त करता है. मैं महान हूँ और मेरी महानता के लिए ये जो दो बन्धन हैं किनारों के, मुझे नहीं चाहिये.
नदी के अन्दर जब ये मनोविकार आ गया तो दोनों किनारों से कह दिया-तुम हट जाओ, मुझे तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं. दोनों किनारे हट गये. परिणामतः नदी का सारा प्रवाह अस्त व्यस्त हो गया और थोड़ी ही दूर में उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया.
कारण कि सारा पानी इधर-उधर फैल गया. नदी ने दोनों किनारों से फिर प्रार्थना की - -तुम मेरी व्यवस्था के लिए आओ. तुम्हारे सहयोग के विना मैं कभी महान नहीं बन सकती. नदी के दोनों किनारें जैसे ही उपस्थित हुए फिर से अनुशासन मिल गया. वो प्रवाह वहते वहते वरावर उस नदी को समुद्र तक पहुंचा दिया, उसे वहाँ महासागर का रूप दे दिया.
याद रखिये, जीवन भी एक प्रकार का प्रवाह है और उसके अन्दर यम नियम अनुशासन है तो ये बंधन में प्रवाह वहते-वहते आपको परमात्मा तक पहुंचा देता है, वहीं आत्मा परमात्मा वन जायेगी. इसलिए कहा गया है कि जीवन व्यवह्मर में यम नियम का अनुशासन आवश्यक है.
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