________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जीवन व्यवहार
११७ विचारों की दुर्बलता :
अशान्ति का मूल कारण हमारे विचारों की दुर्बलता है. दुर्विचारों का आक्रमण हमारी आत्मा को सुषुप्तावस्था में डाल चुका है. आत्मा के उपर दुर्विचारों की इतनी धूल पड़ी है कि इसे साफ करने में बहुत समय लगेगा. उसके लिए दृढ़ संकल्प सत्यनिष्ठा और सदाचार का बल चाहिये. देश की वर्तमान दशा इसीलिए इतनी गिरी है. यह सिनेमा जो आपके मनोरंजन का साधन है, हमारी आत्मा की हत्या करने वाला है. विषयवासना को जाग्रत करने वाला है. ये उपन्यास कैन्सर हैं आत्मा का और ये होटल-क्लब आत्मा के पतन के द्वार हैं. इनमें कभी भी हमारे चित्त को शान्ति नहीं मिल सकती. ये सिनेमा, उपन्यास, होटल हमारे चरित्र के पतन के कारण है. हमारे यहाँ तो सदाचार की परिभाषा में यहाँ तक कहा गया है कि यदि दीवार पर भी स्त्री का कोई चित्र लगा हो तो नहीं देखे. आंखों में विकार आ जायेगा. हमारे यहाँ स्त्री को देवी के रूप में माना जाता है; इसीलिए कंहा भी गया है : । 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता' ।
अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ पर देवता निवास करते हैं. हमारे यहाँ नारी को एक ही रूप में देखा गया है और वह है मां का रूप.
'मातृ देवो भव.' माँ को देवी तुल्य मानना, उनका आशीर्वाद वरदान के रूप में रोज प्रतिदिन ग्रहण करना.
लार्ड मेकाले, जिसने हमारी पुरानी शिक्षा पद्धति को नष्ट करने के लिए आधुनिक शिक्षा प्रणाली का सुगर कोटेड पॉयजन Sugar Coted Poision दिया. उस समय में यहाँ लार्ड कर्जन वायसराय थे. सर आशुतोष मुखर्जी जिनकी विद्वता से प्रभावित होकर वायसराय ने उन्हें कोंसिल का मेम्वर तथा कलकत्ता युनिवर्सिटी का वाइसचांसलर बनाया. सर आशुतोष मुखर्जी प्रथम भारतीय वाइसचांसलर बने. ऐसे विद्वान व्यक्ति को जव वायसराय ने कहा, - 'देखो भारतीय शिक्षा प्रणाली में क्या-क्या परिवर्तन करते हैं, इंग्लैण्ड जाकर वहाँ की बड़ीवड़ी युनिवर्सिटीज में जा कर अध्ययन करो और फिर रिपोर्ट करो.
सर आशुतोष मुखर्जी के संस्कार कैसे? एकदम भारतीय संस्कृति में रंगे हुए. माता-पिता की आज्ञा को देव-आज्ञा मानने वाले. उन्होंने वायसराय को कहा-आपका कहना सही है. पर इंग्लैण्ड जाने के लिए माता को पूछ कर कल जवाव दूंगा. जो व्यक्ति अपने माता-पिता का कहना नहीं माने तो भगवान कहाँ से प्रसन्न होगा, माता-पिता की आज्ञा का पालन करना, ये हमारे यहाँ का आदर्श है. मातृ भक्त सर आशुतोप का उत्तर सुन कर लार्ड कर्जन ने मुँह बनाया कि ये कैसा पागलपन है? अपनी ८० वर्षीय अनपढ़ माता से जाकर पूछेगा. भला इंग्लैण्ड जाने का अवसर कोई मूर्ख ही छोड़ सकता है.
For Private And Personal Use Only