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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ जीवन व्यवहार मैं आपकी वस्तु ग्रहण न कर सका. आप देना चाहते हैं तो एक नियम मैं ले सकता हूँ किन्तु मेरी बुद्धि से. महाराज ने कहा-ठीक है भाई, तुम्हारी जो इच्छा हो, वही नियम तुमको दूंगा. मफतलाल ने कहा-मेरे घर के सामने एक कुम्हार रहता है. रोज सवेरे जब मैं उठता हूँ तो सबसे पहले उस कुम्हार की टाट दिखाई देती है. तो मैं यह नियम ले सकता हूँ कि जहाँ तक कुम्हार की टाट नहीं देखू, वहाँ तक चाय पानी नहीं करूं. महाराज ने नियम दे दिया और कहा - धन्यवाद. इतना भी तुम कर लेते हो तो धीरे-धीरे यह परिग्रह रूप ले लेगा. इस बात को काफी समय बीत गया. एक दिन मफतलाल कुछ लेट उठे. कुम्हार अपनी दिनचर्या के अनुसार गधे को लेकर खेत चला गया था. उठते ही मफतलाल ने सामने देखा वहाँ कुम्हार नहीं था. घर वालों से पूछा तो पता लगा कि कुम्हार तो खेत में जा चुका है और बारह बजे पहले आने वाला नहीं है. सेठ मफतलाल ने कहा-गजब हो गया; तब तो मेरी ही बारह बज जायेंगे. यहाँ तो उठते ही चाय चाहिये. अब क्या करें? आखिरकार मफतलाल ने कुम्हार के खेत का पता मालुम किया और घोड़ा लेकर रवाना हो गये. कुम्हार खेत में से मिट्टी निकाल रहा था, पसीने से भरी टाट, सूर्य की रोशनी में चमकी. मफतलाल ने घोड़े पर बैठे-बैठे जब कुम्हार की टाट देखी तो इनता प्रसन्न हुआ कि प्रसन्नता के अतिरेक में चिल्ला उठा-देख लिया, देख लिया. उधर कुम्हार को गढ्ढ़ा खोदते समय संयोगवश काफी सामान निकल आया था.काफी कीमती रत्न आभूषण थे. कुम्हार ने देखा-ये तो मफतलाल है. इसने अगर गांव में जाकर कह दिया तो सारा माल लुट जायेगा. ठाकुर ले जायेगा. उसने मफतलाल से कहा- अरे! जो भी है, आधाआधा वांट ले. मफतलाल ने देखा कि सोना चांदी दुनियां भर का बहुमूल्य सामान पड़ा है. मफतलाल खुश हो गया. अपने हिस्से का आधा माल पोटली में डाल घर ले आया. फिर तो वो जो रोने लगा कि-लाख धिक्कार है मुझे. महाराज ने मेरे को कितना समझाया, पर मैं नहीं माना. जाते जाते एक नियम मैंने लिया और उसी नियम के प्रभाव से कितनी संपत्ति मुझे मिल गई. घर का सारा दारिद्र्य समाप्त हो गया. घर में जो समस्या थी, वो नियम के पुण्य प्रताप से खत्म हो गई. यदि मैंने पहले ही नियम ले लिये होते तो मेरा पहले ही कल्याण हो जाता. तो मेरे कहने का मतलब है कि एक भी लिया हुआ नियम कभी निष्फल नहीं जाता. आपका जीवन नियमों में बंधा रहेगा. तो नियमों के पुण्य प्रभाव से आपका सारा जीवन ही बदल जायेगा. आपको मानसिक शांति तो प्राप्त होगी ही. उसके साथ साथ आपकी जीवन दृष्टि भी बदल जायेगी. For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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