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मितभाषिता: एक मौन साधना कर्त्तव्य की कसौटी :
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जितना लम्बा प्रश्न हो, उतना ही लम्बा जो उत्तर दे सकता है, वह सचमुच गम्भीर विद्वान् होता है - इसमें कोई सन्देह नहीं. एक दृष्टान्त से यह बात स्पष्ट होगी.
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एक नवयुवक था. बहुत से शास्त्र पढ़ कर वह संभ्रम में पड़ गया था; क्योंकि सभी शास्त्र भिन्न-भिन्न परस्पर विरोधी तर्क विधान करते थे.
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कहीं लिखा था - " सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् । । [ सच बोलना चाहिये, मीठा बोलना चाहिये ] " कहीं लिखा था - " न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । । [ अप्रिय हो तो सत्य नहीं बोलना चाहिये ] " कहीं लिखा था - " वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति । । [ वेदविहित हिंसा हिंसा नहीं है ] " कहीं लिखा था " मा हिंस्यात्सर्वभूतानि ।। [सब प्राणियों को मत मारो (कुछ प्राणी मारे जा सकते
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हैं, सब नहीं)]” तो कहीं लिखा था - " अहिंसा परमो धर्मः [ अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है ]
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कहीं लिखा था - " मौनान्मूर्खः । । [ मौन रहने वाला मूर्ख होता है ] " कही लिखा था- "मौनं सर्वार्थसाधकम् ।। [ मौन सारे प्रयोजनों को सिद्ध करता है ] "
कहीं लिखा था - " अति सर्वत्र वर्जयेत् । । [ अति सब जगह त्याज्य है ] " कहीं लिखा था'अधिकस्याधिकं फलम् [ अधिक का अधिक फल होता है- जितना गुड़ डालो उतना मीठा होता है ] "
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कोई भक्ति का समर्थन करता है कोई ज्ञान का! कोई श्रद्धा का समर्थक है कोई बुद्धि का ! कोई विश्वास का अनुमोदन करता है, कोई विवेक का तर्क का !
अपनी शंका का निवारण करने के लिए वह सच्चे गुरू की खोज में इधर-उधर भटकता हुआ किसी महर्षि के आश्रम में पहुंचता है, महर्षि उस समय उच्चासन पर विराजमान हो कर अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे.
युवक तीर की तरह सीधा महर्षि के निकट पहुंच कर उनके कन्धे पकड़ कर उनकी आँखों में आँखें डालकर पूछता है – “यदि आप ज्ञानी हैं तो मेरी शंका का समाधान कीजिये. "
शिष्यों में से एक ने कहा “भाई ! प्रश्न करने की यह कोई विधि नहीं है, पहले आपकी तीन प्रदक्षिणाएं लगाकर तीन बार गुरूदेव को वन्दना करनी चाहिये. फिर बैठकर विनयपूर्वक अपना प्रश्न प्रकट करना चाहिये. "
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युवक बोला - “ अरे ! तीन क्या ? मैं तीन सौ प्रदक्षिणाएं करूँगा और तीन बार नहीं, तीन हजार बार प्रणाम करूँगा; परन्तु यह सब बाद में, पहले मेरे प्रश्न का उत्तर मिलना चाहियेमेरी शंका का निवारण होना चाहिये मेरी समस्या का समाधान होना चाहिये. "
महर्षि ने भी अपने शिष्यों को डाँट कर कहा - “ मत रोको इसे ! पढ़ाते-पढ़ाते मुझे चालीस