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जीवन दृष्टि ईर्ष्यालु पंडित ने कहा :
“आगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्वहन् ।।" [लो, डंडा और कम्बल धारण करने वाला यह हेम नामक ग्वाला आ गया है] यह सुन-समझ कर आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि ने तत्काल शान्ति से उत्तर दिया :“षड् दर्शन पशु प्रार्या. श्चारयन् जैन वाटके ।।"
(आपका कथन सत्य है क्योंकि) लगभग पशुओं के समान जो छह दर्शन हैं, उन्हें जैन सिद्धान्त रूपी बाड़े में चराता हुआ (यह हेम नामक ग्वाला दंड-कम्बल धारण किये इस राजसभा में आ गया है]
यह सुन कर वह पंडित झेंप गया. फिर कभी उसने आचार्यश्री का इस तरह उपहास करने का प्रयास नहीं किया.
एक सड़क पर किसी जैन साधु को सामने से आते देख कर एक ब्राह्मण पंडित ने अपने साथियों से कहा : “इन जैन साधुओं की ओर तो कभी देखना तक नहीं चाहिये, क्योंकि ये नहाते ही नहीं."
साधु ने यह सुन लिया. वह बोला : “गाय कभी नहाती नहीं; किन्तु भैंस पानी में ही पड़ी रहती है. आप किसका अधिक सन्मान करते हैं? किसे अधिक पूज्य मानते हैं?" वह निरुत्तर हो गया और चुपचाप अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया.
इसी प्रकार सड़क पर एक जैन मुनि को सुना कर किसी पंडित ने अपने शिष्यों से कहाः "जो इन लोगों के दर्शन करता है, वह नरक में जाता है!
जैन मुनि ने यह सुन कर उसे मधुर शब्दों में पूछा : भाई! यह बता दीजिये कि जो आपके दर्शन करता है, वह कहाँ जाता है?" पंडित ने कहा :- “स्वर्ग में!"
जैन मुनि :- “तब तो आपकी ही मान्यता के अनुसार में स्वर्ग में जाऊँगा और आप नरक में जायँगे; क्योकि मैंने आपके दर्शन किये हैं और आपने मेरे!"
यह सुन कर वह पंडित भी निरुत्तर हो कर आगे बढ़ गया.
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