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मितभाषिता : एक मौन साधना
१०१ ___ यह सुनते ही बहू ने आँखों से पट्टी हटा कर देखा. वह सचमुच उसकी माँ थी, सासू नहीं. वह वहुत लज्जित हुई. फिर उसने कभी ऐसा नाटक नहीं किया.
यहाँ भी चतुर पति ने कोमल शब्दों के प्रयोग से ही पत्नी को आँखों पर पट्टी बाँधने के लिए तैयार किया था.
समय और धन का उपयोग करें : किसी सेठ के पास एक बार एक अनाथ बालक आया और बोला :- “सेठजी! मैं दो दिन से भूखा हूँ. कृपा करके मुझे कुछ भोजन दीजिये या कुछ पैसे दीजिये, जिससे मैं कुछ खाने की सामग्री खरीद कर पेट का गड्डा भर सकूँ!" सेठजी ने लापरवाही से कहा दिया, - “आज नहीं, तुम फिर कभी आकर ले जाना.”
दूर से एक कवि यह दृश्य देख रहा था. उससे रहा नहीं गया. निकट आकर अन्योक्ति अलंकार में उसने कहा :वितर वारिद! वारि दवातुरे चिर पिपासित चातक पोतके प्रचलिते मरुति क्षणमन्यथा क्व च भवान् क्व पयःक्व च चातकः ।। हे मेघ! दावानल से घबराये हुए लंबे समय से प्यासे इस चातक पक्षी के बच्चे को तू जलदान कर; अन्यथा क्षणभर हवा चलने पर तू कहाँ रहेगा? कहाँ तेरा पानी रहेगा? और कहाँ यह चातक? समय पर अपने जलका उपयोग कर. इन शब्दों में जो प्रतिबोध छिपा था, वह इस प्रकार था :हे सेठ! दरिद्रता से पीड़ित भूखे प्यासे इस बालक को तू सन्तुष्ट कर; अन्यथा समय बितने पर जब मृत्यु का आगमन होगा तब कहाँ तू रहेगा? कहाँ तेरा धन रहेगा? और कहाँ यह अनाथ बालक? समय रहते अपने धन का उपयोग कर.
सेठ ने कवि की वाणी से प्रभावित होकर बालक को उसकी आवश्यकता के अनुसार धन देकर विदा किया.
आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि की विद्वता से गुजरात के महाराज कुमारपाल बहुत प्रभावित थे. वे उन्हें विद्वत्गोष्ठियों में सम्मानपूर्वक आमन्त्रित किया करते थे. आचार्यजी के इस सम्मान से ईर्ष्यालु लोग उनका मजाक उड़ाने का अवसर ढूँढ़ने में लगे रहते. एक दिन की बात है. आचार्यजी जब राजसभा में पधारे उनका उपहास करते हुए किसी
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