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जीवन दृष्टि
इसने मेरे पेड़ के नीचे पेशाब करके मेरा अपमान किया है. मैं आज इसकी जान लेकर ही छोडूंगी. हटो - हटो सामने से हट जाओ! मैं चंगेश्वरी देवी हूँ !”
घर के सब लोग यह सब देख-सुनकर घवराहट में पड़ गये. सबने गिड़गिड़ाते हुए प्रणाम करके बहू को बचाने का उपाय पूछा.
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वह ठहाका लगा कर बोली :- "यदि तुम इस बहू की जान बचाना चाहते हो तो इसका केवल एक ही उपाय है. इस घर की बुढ़िया यदि मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर इस घर के चारों और तीन चक्कर लगा दे तो मैं इसे छोड़ कर जा सकती हूँ."
उस औरत का पति बहुत चतुर था. वह पत्नी की चाल को समझ गया; किन्तु मन-हीमन कुछ सोच कर उसने मधुर स्वर में निवेदन किया- “हे चंगेश्वरी माँ ! मेरी माता आपके तेज को सह नहीं पाएगी; इसलिए आप यदि फेरी लगाने से पहले अपनी आँखों पर कपड़े की आठ तह वाली पट्टी बाँधने की कृपा करेंगी तो ठीक रहेगा.”
बात मंजूर हो गई. पति ने अपनी बूढ़ी माता से कहा कि आप स्नान करके नये कपड़े पहन लीजिये.
इधर बहू ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और उधर भागता हुआ पति अपनी ससुराल जा पहुंचा और वहाँ अपनी सासू से घबराते हुए कहा- आपकी बेटी की जान खतरे में है. उस पर चंगेश्वरी देवी का प्रकोप हुआ है. यदि उसे अपनी पीठ पर बिठा कर आप मेरे मकान के तीन चक्कर लगा देगी तो वह बच जायगी; अन्यथा वह मर जाएगी उसकी जान केवल आप ही बचा सकती हैं. "
सासू बोली - " ऐसी कौन माँ होगी, जो अपनी बेटी की जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार न हो ? चलिये मैं इसी समय आपके साथ चलती हूँ.'
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" देख-देख, बंदी की फेरी !
देख-देख बंदी की फेरी !!”
पति सासू के साथ अपने घर आया, बेटी को उसकी पीठ पर बिठा कर मकान के तीन चक्कर लगवाये. आँखों पर पट्टी बंधी होने से वह अपनी माँ को पहचान न सकी. जब मकान के चारों और तीसरा चक्कर लगवाया जा रहा था, उस समय वहू से न रहा गया. वह सबको सुनाकर बोलने लगी
"
जब तीसरा चक्कर पूरा होने आया तव पति ने भी उसी स्वर में कहा :
" देख - देख, माँ तेरी कि मेरी ?
देख देख, माँ तेरी की मेरी ?"
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