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शुद्ध आहार गवेषणा अर्थात् ढंढण मुनि
(१)
भगवन्! आपके पास अठारह हजार मुनिवर हैं। इन सब में सर्व श्रेष्ठ उग्र तपस्ची मुनिवर कौन है ? श्रीकृष्ण महाराजा ने नेमिनाथ भगवान को देशना के पश्चात् यह प्रश्न पूछा भगवान ने कहा, 'कृष्ण! तपस्वी तो अनेक हैं परन्तु इन सव में श्रेष्ठ एवं दृढ़ तो ढंढण मुनि हैं ।'
ढण मुनि का नाम सुनकर श्रीकृष्ण की पूर्व स्मृति जागृत हुई - 'ढंढणा रानी का यह इकलौता पुत्र अत्यन्त सुकोमल, विलासी एवं सुख में पला हुआ था । उसने एक वार भगवान श्री नेमिनाथ की वाणी का श्रवण किया और उससे प्रतिबोध प्राप्त किया ।
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ढणाने एवं मैंने उसे बहुत बहुत समझाया परन्तु वह नहीं समझा और उसने दीक्षा अङ्गीकार कर ली । उग्र तप एवं त्याग में वह इतना अधिक आगे बढ़ा कि भगवान अपने श्री मुख से उसे 'सर्व श्रेष्ठ अणगार' कहते हैं। श्रीकृष्ण के मन में वात्सल्य का आनन्द जाग्रत हुआ और उन्होंने समस्त मुनियों की ओर दृष्टि डाली । उन्होंने उन्हें खोजने का प्रयत्न किया परन्तु वे दिखाई न देने पर उन्होंने भगवान से पूछा, 'भगवन्! इनमें ढंढण अणगार क्यों नहीं दृष्टिगोचर होते?'
'कृष्ण! तपस्वी तो अनेक हैं, परन्तु ढंढण का तप एवं धैर्य अटल है । वे नित्य भिक्षार्थ जाते हैं फिर भी उन्हें द्वारिका में में निर्दोप आहार प्राप्त नहीं होता। अभी वे भिक्षा
हे कृष्ण! तपस्वी तो अनेक हैं मगर ढण का तप एवं धेर्य अटल है!
सांभाला