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मुनि-दर्शन अर्थात् इलाचीपुत्र कथा
७५ _ 'ना वापजी! यह पुत्री तो हमारी आजीविका का आधार और हमारा बहुमूल्य रत्न है। हम तो उसका विवाह ऐसे युवक से करेंगे जो हमारे साथ नृत्य करे, खेल करे, राजा को रिझाये और हमारी सम्पूर्ण न्यात को दावत दे।'
सेठ सकपकाये, व्याकुल हो गये। उन्होंने इलाची को कहा, 'नट की शर्त कठिन है। नटनी का मोह छोड़ और तू कहे वैसी कन्या के साथ तेरा विवाह करूँगा ।'
इलाची ने पिता को कोई उत्तर नहीं दिया, जिससे वे समझ गये कि पुत्र अपनी हठ नहीं छोड़ेगा। - भोर होने पर नटों ने वहां से प्रयाण किया। इलाची ने उन्हें नगर के बाहर जाते देखा । वह उठा, उसने माता पिता को मन ही मन प्रणाम किया और मन्थर गति से चलता हुआ से वह घर से बाहर निकला और दौड़कर नटों से जा मिला । उसने नटों से कहा, 'तुम्हारी समस्त शर्ते मुझे स्वीकार हैं।'
कुछ ही दिनों में इलाची गुलांट खाना और वाँस पर चढ़ना सीख गया और गाँवगाँव खेल बताने लगा तथा समरत नटों में वह युवा नट लोगों के आकर्षण का केन्द्र वन गया।
(३) वेत्रातट नगर में नटों ने पड़ाव डाला । वाँस गाड़ दिये और पी ई ई ई और ढमढम ढोल बजाने लगे।
सम्पूर्ण गाँव चौक में एकत्रित हुआ। वीच में राजा का सिंहासन रखा गया । इलाची मोटी अंगरखी और चोलणा पहन कर आगे गया । राजा के चरण स्पर्श किये और चुटकी भर मिट्टी लेकर सिर पर चढ़ाकर धरती माता को प्रणाम करके वाँस पर चढ़ा।
आज इलाची के हर्प का पार नहीं था। उसने संकल्प किया था कि 'राजा को प्रसन्न करूँगा और भारी पुरस्कार प्राप्त करूँगा। तत्पश्चात् मैं न्यात(जाति) को भोजन कराऊँगा और धूम धाम से नटनी के साथ विवाह करूंगा।'
इस रस्से से उस रस्से तक कूदता हुआ इलाची दौड़ता है तो वीच में आकाश में उछल कर पुनः रस्से पर स्थिर होता है। कभी वह एक पाँव से रस्से पर चलता है, तो कभी कमान लेता-लेता रस्से पर अग्रसर होता है।
सम्पूर्ण नगर तालियाँ वजाकर इलाची का स्वागत करता है और वह नीचे उतर कर राजा को प्रणाम करके दान माँगता है। राजा नींद में से जगा हो उस प्रकार कहता है, 'नटराज! तुमने सुन्दर खेल किया होगा, परन्तु मेरा चित्त व्यग्र था। मैंने तुम्हारा खेल नहीं देखा, पुनः खेल करो।'
इलाची ने पुनः राजा को प्रणाम किया, रेत सिर पर चढ़ाकर तीव्र वेग से वाँप्स के ऊपर से रस्से पर कूदा। नये नये खेल करके लोगों के मन को रिझाने लगा, परन्तु राजा का मन नहीं रीझा । इलाची का मन खेल करते समय घुघरु वाँध कर नृत्य करती