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सच्चा न्याय अर्थात् यशोवर्मा नृप कथा बजा रही थी । राजा गाय के समीप खड़ा रहा और गाय ने घंटा बजाना बन्द कर दिया।
राजा ने कहा, 'गौ माता! तुम्हारा अपराध किसने किया है? गाय कुछ बोली नहीं परन्तु सिंगों से मार्ग बताती चली । गाय आगे और राजा पीछे चल रहा था। राजमार्ग में लोगों के दल के दल राजा और गाय को देखते रहे । इतने में गाय बछडे के पास आकर खड़ी रही। खड़े हुए लोगों के समूह को राजा ने पूछा, 'इस बछड़े को किसने मारा है? कोई कुछ भी नहीं बोला । एक प्रहर बीत गया । मंत्रियों ने राजा को कहा, "भोजन कर लीजिये, फिर इसकी जाँच कराते हैं।'
राजा ने कहा, 'न्याय हुए बिना भोजन कैसे किया जाये?' सन्ध्या हो गई, राजकुमार पिता के पास आया, चरण-स्पर्श किये और वोला, 'पिताजी! यह अपराध मेरा है । अथ दौड़ाते समय बछडा मेरे द्वारा मारा गया है।'
राजा अधिक उदास एवं गम्भीर हो गया, क्योंकि आज तक के न्याय की सच्ची कसौटी (परीक्षा) आज थी।
प्रातः काल हुआ । राज्यसभा एकत्रित हुई, विद्वानों को निमन्त्रित किया गया । राजा ने कहा, 'विद्वद्वर्य! इसका जो उचित न्याय हो वह वतायें ।'
विद्वानों में एक विद्वान वोला, 'राजन! न्याय करना तो ठीक है परन्तु आपका यह इकलौता पुत्र है और वह राज्य का आधार है । यह सव विचार तो करना पड़ेगा न? राजपुत्र को क्या दण्ड दिया जाये?'
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BU TUTTUUR
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हरिसमपुरा
न्याय प्रिय राजा यशोवर्मा ने न्याय मांगने के लिए घण्टे की रस्सी
में सींग लगा कर घंटा बजाते हुए गाय को देखा.