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सच्चा न्याय अर्थात्
यशोवर्मा नृप कथा
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कल्य ल्याण कटकपुर नगर में राजा यशोवर्मा राज्य करता था जो न्याय के लिए दूर दूर तक विख्यात था। नगर के मध्य में राजा का प्रासाद था जहाँ सामने ही एक बड़ा घंटा बँधा हुआ था। जब भी किसी पर अन्याय होता तब वह यह घंटा बजाता । घंट की आवाज सुनते ही राजा यशोवर्मा वहाँ आता और बजाने वाले के कष्ट का कारण सुन कर सच्चा न्याय करता था ।
यशोवर्मा का न्याय ऐसा था कि उसमें किसी की चतुराई नहीं चलती थी | सच्चा न्याय करने के लिए राजा कई बार वेष बदल कर घर-घर घूमता और धन के वल पर अथवा शक्ति के बल पर अन्याय करने वालों को कड़ा दण्ड देता था। इस राजा के 'अतिदुर्दम' नामक इकलौता पुत्र था, जो अत्यन्त ही पराक्रमी था ।
(२)
एक बार राजकुमार अतिदुर्दम अध दौड़ाता हुआ राजपथ पर जा रहा था। उस समय उसने कुछ दूर पर एक सद्य प्रसुता गाय बछडे सहित देखी। राजकुमार ने लगाम खींच कर अश्व को रोकने का प्रयत्न किया परन्तु तीव्र गति से दौड़ता अश्व रुके उससे पूर्व उसका पाँच बछडे पर पड़ा और वह तड़पने लगा। राजकुमार अश्व से नीचे उतरा, वछडे पर पानी छिड़कवाया परन्तु सुकोमल बछडा नहीं बचा। गाय पछाड़ें खाने लगी, आँखों से आँसू वहाने लगी। राजकुमार को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह राजभवन में गया ।
गाय पछाडें खा रही थी और बछडे के आस-पास घूम रही थी। कभी वह बछडे को सूँघती और कभी सींग भिड़ाकर चारों पाँचों से उछलती थी। लोग यह राव दृश्य खड़े खड़े देख रहे थे । इतने में पास खड़े एक व्यक्ति ने गाय को कहा, 'राजा न्यायी है, जा, दरवार में जा और न्याय माँग कि मेरा बछडा राजकुमार ने मार दिया।'
(३)
मध्याह्न का समय था । राजा राज्य कार्य से निवृत्त होकर भोजन करने के लिए वेठा ही था कि एक-दो-तीन-चार घंटे वजे । राजा ने हाथ में लिया हुआ कौर पुनः थाली में रखा, हाथ धोये और बाहर आया तो घण्टे की रस्सी में सींग लगा कर गाय घंटा