________________
सचित्र जैन कथासागर भाग - १ हाथी अट्ठम के पारणे अट्ठम करने लगा। एक वार प्यास लगने से वह अचित्त जल पीने के लिए एक सरोवर पर गया और वहाँ खड़डे में पाँव रख कर जल पीने लगा जल पीते-पीते उसका पाँव कीचड़ में फँस गया और ज्यों-ज्यों पाँव बाहर निकालने का प्रयत्न करने लगा, त्यों-त्यों उसका पाँव कीचड़ में फँसता गया | इतने में कुर्कुट साँप वहाँ आया। हाथी को देखते ही उसकी पूर्व भव की शत्रुता की भावना जाग्रत हो गई और ऐसा अवसर पुनः प्राप्त नहीं होगा - यह सोचकर वह हाथी का संहार करने के लिए उसके सिर पर चढ़ गया और उसने उसके सिर के कोमल भाग पर विषाक्त दाढों से डस लिया। हाथी समझ गया कि यमदूत अब उसे लेने के लिए आ रहे हैं । अब मृत्यु सन्निकट है। ऐसे अवसर पर हाथी समभाव से भयंकर वेदना सहन करता हुआ, समस्त जीवों से क्षमा याचना करके, पंच परमेष्ठि के स्मरण पूर्वक साँप को अपना उपकारी मानकर और शुभध्यान में मर कर आठवे देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। कुर्कुट साँप अपने वैर का बदला लेकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और हाथी ने समभाव से वेदना सहन की इस विषय में विचार कर वह और अधिक वैराग्नि में जलने लगा। इस प्रकार वैर का बदला लेने की वृत्ति से मर कर घोर पाप कर्म के बंधन में बंध कर वह पाँचवी नरक में उत्पन्न हुआ।
तीसरा भव मरुभूति आठवे देवलोक में देव बन कर उत्तम सुखों का आनन्द लेने लगा और कमठ घोर पाप-कर्मों के कारण पाँचवी नरक में भयंकर नारकीय वेदना सहन करने लगा।
चौथा भव मरुभूति - किरणवेग विद्याधर। कमठ - योजनदेही साँप।
महाविदेह क्षेत्र के वैताढ्य पर्वत पर स्थित तिलकपुर नगर में विद्युतगति नामक विद्याधर राजा था, जिसके तिलकावती नामक रानी थी। मरुभूति का जीव रानी तिलकावती की कुक्षि से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ, जिसका नाम किरणवेग रखा गया। राजकुमार उत्तम प्रकार से अध्ययन करता हुआ जीवन यापन करने लगा | युवावस्था प्राप्त होने पर राजकुमार का विवाह रूपवती राजकुमारी पद्मावती के साथ किया गया। एक बार जब गगन मार्ग से आचार्य भगवन्त के साथ अनेक श्रुत-सागर मुनि भगवन्त राजा के उद्यान में पधारे । देवताओं ने वहाँ कमलों की रचना की और उस पर उन मुनियों ने अपने आसन जमाये तब नगर-निवासियों तथा राजा ने भी उक्त उद्यान में गुरुदेव की वाणी श्रवण की। आचार्य भगवन्त ने संसार की असारता तथा मानव-भव