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सचित्र जैन कथासागर भाग - १ उसके पिता तुरन्त आकुल-व्याकुल हो गये। उन्होंने तुरन्त अञ्जना की खोज करने के लिए अपने सेवकों को दसों दिशाओं में भेजा और स्वयं अपनी पत्नी के साथ जहाँ पवनंजय अग्नि-प्रवेश करने वाला था वहाँ आ पहुँचा। उनके सेवक ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हनुमानपुर पहुँचे । अञ्जना ने पवनंजय का निर्णय सुनकर अत्यन्त क्रन्दन करना प्रारम्भ किया। उसका विलाप सुनकर प्रतिसूर्य ने उसे आश्वासन दिया और वह एक विमान में अञ्जना तथा हनुमान को विठाकर जहाँ पवनंजय था उस जंगल में आ पहुँचा । अञ्जना को देख कर पवनंजय ने अपनी भूल की क्षमा याचना की।
तत्पश्चात् अञ्जना के पिता, भाई, सास, ससुर सब मिले | सबने अञ्जना के धैर्य की सराहना की और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की। तत्पश्चात् पवनंजय एवं अञ्जना वैराग्य-मार्ग की ओर मुड़ गये और आत्म-कल्याण किया।
इतने में रावण को पुनः वरुण के साथ युद्ध करना पड़ा, जिसमें हनुमान कतिपय सामन्ता को लेकर सम्मिलित हुआ। वरुण अपने सौ पुत्रों को लेकर युद्ध भूमि में आ धमका । हनुमान ने उन पुत्रों का पशुओं की तरह बाँध लिया । रावण एवं वरुण के मध्य घमासान युद्ध हुआ | अन्त में रावण ने वरुण एवं उसके पुत्रों को बन्दी बना कर अपनी छावनी में ले आया और फिर उन सबको मुक्त कर दिया । वरुण ने अपनी पुत्री सत्यवती का हनुमान के साथ विवाह कर दिया और रावण ने शूर्पणखा की पुत्री अनंगकुसुमा हनुमान को व्याह दी । इशा प्रकार की एक हजार कन्याओं के साथ विवाह करके पराक्रमी हनुमान घर लौटा। (लघुत्रिपष्ठिशलाका पुरुषचरित्र से)
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रिशोमाग सती अंजना के पिता, भाई, सास-ससुर सभी ने अंजना की सतीत्व एवं धीरता को प्रशंसा की.