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सती की सहनशीलता अर्थात्
सती अञ्जना सुन्दरी
(१)
महेन्द्रपुर के राजा महेन्द्र के अञ्जना सुन्दरी नामक एक रूपवती राजकुमारी थी । उसके साथ विवाह के लिये दो नामों का प्रस्ताव था। एक राजा प्रह्लाद के पुत्र 'पवनंजय' का तथा दूसरा हिरण्याभ के पुत्र 'विद्युत्प्रभ' का । परन्तु ज्योतिषियों ने बताया था कि विद्युत्प्रभ का आयुष्य अति अल्प है अतः उससे 'अञ्जना' का विवाह करना उचित नहीं है। इस कारण से राजा महेन्द्र ने अञ्जना का विवाह पवनंजय के साथ करने का निश्चय किया।
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विवाह की तिथि निश्चित की गई, परन्तु इधर पवनंजय की विवाह से पूर्व अञ्जना सुन्दरी से मिलने की तीव्र इच्छा थी । यह बात उसने अपने मित्र प्रहसित को कही । प्रहसित की योजनानुसार पवनंजय एवं प्रहसित दोनों रात्रि के समय वेष बदल कर जिस उद्यान में अञ्जना सखियों के साथ विहार कर रही थी वहाँ गये। अञ्जना की एक सखी पवनंजय की प्रशंसा कर रही थी तो उसकी दूसरी सखी वसन्ततिलका विद्युत्प्रभ की प्रशंसा कर रही थी । अज्जना शान्त चित्त से दोनों सखियों का कथन सुन रही थी । यह देख कर पवनंजय को मन में अत्यन्त खेद होने लगा। उसके मन में विचार आया कि अञ्जना सुन्दरी विद्युत्प्रभ की प्रशंसा करने वाली अपनी सखी को बोलने से क्यों नहीं रोकती ? इस विचार से उसे अञ्जना पर अत्यन्त क्रोध आया। वह तलवार खींच कर उसका वध करने के लिए तत्पर हो गया परन्तु उसके मित्र प्रहसित ने उसे ऐसा करने से रोकते हुए कहा, 'मित्र! इस प्रकार क्रोध करने से अथवा अञ्जना पर क्रोधित होने से कोई लाभ नहीं होगा । अञ्जना केवल लज्जा के कारण ही उस सखी को बोलने से नहीं रोकती ।'
प्रहसित के ऐसा कहने पर पवनंजय ने तलवार म्यान में डाल दी, परन्तु अञ्जना के प्रति उत्पन्न क्रोधाग्नि शान्त नहीं हुई । अञ्जना के साथ उसका विवाह हो गया । चे विवाह करके घर आ गये तो भी पवनंजय के मन में अञ्जना के प्रति जाग्रत क्रोध भड़कता ही रहा । अतः मन में कई कामनाएँ लेकर ससुराल आई हुई अञ्जना को पवनंजय ने मधुर वचन कहकर बुलाया तक नहीं । अञ्जना की नारी-सुलभ इस व्यथा को पवनंजय भला मनुष्य कैसे जान सकता था ?