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________________ (१५) मुनिदान अर्थात् धन्ना एवं शालिभद्र का वृत्तान्त प्रतिष्ठानपुर अर्थात् वर्तमान पैठन | वहाँ 'नयसार' सेठ के चार पुत्र थे। छोटे पुत्र का नाम धा धन्यकुमार। सेठ ने इस पुत्र का नाम धन्यकुमार इसलिये रखा कि उसका जन्म होते ही सेठ की ऋद्धि, सिद्धि और प्रतिष्ठा में वृद्धि होने लगी | सेठ धन्य धन्य होने लगे, इसलिये उन्होंने इसका नाम धन्यकुमार रखा। धन्यकुमार चतुर एवं बुद्धिमान था | एक वार सेठ ने प्रत्येक पुत्र को यत्तीस-बत्तीस मुद्राएँ देकर कहा, 'जाओ, अपना भाग्य आजमाओ।' चारों भाई मुद्राएँ लेकर रवाना हुए। एक गया पूर्व दिशा में तो दूसरा गया अन्य दिशा में | चारों अलग अलग गये। उन्होंने आगे जाकर अपनी इच्छानुसार वस्तुएँ खरीदीं, परन्तु उनमें से तीन पुत्र जब घर लौटे तो बत्तीस में से एक भी मुद्रा उनके पास नहीं बची। धन्ना ने विचार किया, 'इतनी मुद्राओं से क्या व्यापार किया जाये?' उसने एक भेड़ ली और राजमार्ग से अश्व की तरह उसे लेकर चला। इतने में उधर से राजकुमार निकला। उसे भेड़ लड़ाने का अत्यन्त शौक था । उसने धन्ना को कहा, 'क्या तेरी भेड़ मेरी भेड़ के साथ लड़ानी है?' 'हाँ, लड़ा ले।' 'जिसकी भेड़ हारेगी उसको एक हजार स्वर्ण-मुद्राएँ देनी पडेंगी' राजकुमार ने शर्त रखते हुए कहा। धन्ना ने राजकुमार की भेड़ को घूर घूर कर देखा, अपनी भेड़ को भी देखा और शर्त स्वीकार कर ली। दोनों भेड़ों का संघर्ष हुआ। धन्ना को विश्वास था कि राजकुमार की भेड़ भले ही हृष्ट-पुष्ट हो परन्तु मेरी भेड़ सुलक्षणी होने से पराजित नहीं होगी। हुआ भी ऐसा ही, राजकुमार की भेड़ पराजित हो गई। धन्यकुमार घर आया और पिता के चरणों में एक हजार स्वर्ण-मुद्राएँ रखीं । मातापिता और भाभियाँ प्रसन्न हो गई । भाई फीके पड़ गये और कहने लगे, ‘इसमें क्या
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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