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________________ ५२ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ ने अचानक मुझे देख लिया और बन्दी बनवाया ।' सभाजनों ने माना कि अभी इसे फाँसी का दण्ड सुनाया जायेगा क्योंकि चोरी का सामान उपस्थित है, चोरी करने वाला चोरी करने की यात स्वीकार करता है। इतने मे सवके आश्चर्य के मध्य राजा ने उसके बन्धन खोल दिये और उसे अपने सिंहासन के समीप विठाया क्योंकि उस घटना को समीप के कक्ष में से राजा ने अपने कानों से सुन लिया था। राजा को वंकचूल की खानदानी के प्रति सम्मान हुआ कि जिसने मरणान्त दण्ड होने पर भी रानी का दोष नहीं बताया। राजा जय रानी का वध करने लगा तय बंकचूल ने उसे छुडवाया और कहा, 'राजन्! सम्पूर्ण विश्व विषयों के वश में है, उनमें से जो वच जायें वे भाग्यशाली हैं।' ___ अब वंकचूल लुटेरा नहीं रहा था। वह उज्जयिनी का राजमित्र बन गया था। गुरु महाराज के पास ग्रहण किये हुए नियम जीवन-रक्षक एवं जीवन को उन्नत करने वाले सिद्ध हुए थे। वह अपने नियमों पर अटल था। (७) ___वंकल उज्जयिनी के राजप्रासाद में शय्या पर पड़ा था । उसको तीव्र पीड़ा हो रही थी। राजा, अमात्य एवं वैद्य उसके आसपास बैठे थे। अनेक उपचार किये जा रहे थे परन्तु उसकी पीड़ा वैसी ही बढी हुई थी। उस समय उसकी नाड़ी हाथ में लेकर एक वृद्ध वैद्य ने कहा, 'राजन्! युद्ध में शस्त्रों के प्रहारों से घायल हुए हैं। शस्त्र के घाव पर यदि कौए का माँस दिया जाये तो उसे निश्चित लाभ होगा।' ___वंकचूल वोला, 'वैद्यराज! लाभ होने का कोई अन्य औषध हो तो बताओ, अन्यथा मैं कौए का माँस कदापि नहीं खाऊँगा। क्योंकि मेरे कौए का माँस नहीं लेने का नियम है, मेरे लिए उसका निषेध है।' राजा ने कहा, 'तेरी वेदना मृत्यु लाने वाली है । वैद्यों के पास इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है। नियम में अमुक छूट रखनी पड़ती है। तुझे अपनी इच्छा से थोड़े ही खाना है? यह तो रोग मिटाने के लिए खाना पड़ रहा है।' ____ 'मृत्यु आ जायेगी तो हँसते-हँसते स्वीकार करूँगा, उसका स्वागत करूँगा, परन्तु मैं अपना नियम तो भंग नहीं करूँगा । गुरुदेव द्वारा दिये गये नियमों में से तीन नियमों से मेरी काया पलट हो गयी है, मेरा सम्पूर्ण जीवन परिवर्तित हो गया और मुझे अपार लाभ हुआ है' - वंकचूल ने अपना निर्णय व्यक्त किया। राजा ने विचार करके देखा कि वंकचूल को कौन समझा सकता है? उसकी दृष्टि जिनदास की ओर गई। जिनदास वंकचूल का धर्म मित्र था। राजा ने सोचा कि उसे
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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