SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार नियमों से ओत प्रोत बंकघूल की कथा दिन व्यतीत होते गये । वंकचूल अव चोरी आदि करता था फिर भी उसे गुरुदेव द्वारा दिये गये नियमों पर अटूट श्रद्धा थी। इस बीच में उन आचार्यश्री के शिष्य वहाँ होकर निकले । वंकचूल ने उन्हें आग्रह पूर्वक रोका और कहा, 'भगवन्! आप मेरे सच्चे उपकारी हैं। आप द्वारा दिये गये नियम नहीं होते तो मैं कहीं का नहीं रहता।' ___ गुरु ने कहा, 'भाग्यशाली! जिनशासन का प्रभाव उत्तम है। तुम्हारी पल्ली का स्थान सुन्दर है । यहाँ तुम एक सुन्दर जिनालय का निर्माण कराओ तो उसकी शीतल छाया से तुम्हारा कल्याण होगा।' ___वंकचूल के पास धन का अभाव नहीं था। उसने भव्य जिनालय का निर्माण कराया जिसमें भगवान महावीर की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित की। कुछ ही समय में वह स्थान एक तीर्थ यात्रा-स्थल बन गया। ___ एक बार चर्मणवती नदी में नाव में वैठ कर एक वणिक् एवं उसकी पत्नी यात्रा करने आये। दूर से जिनालय का शिखर देख कर उसकी पत्नी स्वर्ण-कटोरी में चन्दन आदि लेकर तीर्थ की अर्चना करने लगी। इतने में कटोरी हाथ में से छूट कर नदी में गिर पड़ी। वणिक वोला, 'भद्रे! बहुत बुरा हुआ ! यह कटोरी हमारी नहीं थी। यह तो राजा DIT Zani HUTILATI ALATHALINKS S वंकधूल ने अपनी लल्मी एवं ऐश्वर्य को सफल बनाने के लिए परलोक में भी धर्म प्राप्ति के लिए भव्याति-भव्य जिनमंदिर बनवाया, भव्य जिनमूर्ति की उपकारी आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठा करवाई.
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy