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________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ की याचना की। वंकचूल ने कहा, 'महाराज! यहाँ स्थान का अभाव नहीं है, परन्तु हमारा धंधा चोरी का है और साथ ही साथ समस्त पाप-व्यापार का धंधा है। आप यहाँ रह कर हमारे मनुष्यों को धर्मोपदेश देकर उनके मन में परिवर्तन कर दें तो मेरी पल्ली टूट जायेगी। मैं एक शर्त पर आपको वर्षावास के लिए रख सकता हूँ कि आप यहाँ रहें, धर्म-कार्य करें परन्तु धर्म का उपदेश तनिक भी न दें।' आचार्य ने कहा, 'मुझे शर्त स्वीकार है, तुम्हें भी यह प्रण पालन करना होगा कि जब तक हम यहाँ रहें तब तक हमारे आसपास हिंसा न हो। 'अवश्य महाराज, इतना विवेक हम रखेंगे।' कह कर वंकचूल ने आचार्य को वर्षावास के लिए रखा। समय व्यतीत होने में थोड़ा विलम्ब लगता है ? वर्षाकाल व्यतीत हुआ और मुनि तो कमर कस कर विहार पर रवाना हो गये। पल्ली के सब मनुष्य और बंकचूल पल्ली से तनिक दूर तक महाराज को पहुँचाने गये । पल्ली की सीमा पूर्ण होने पर बंकचूल एवं उसके मनुष्य रुक गये। वंकचूल ने आचार्यश्री को कहा, 'महाराज! अब हम अलग होते हैं, अतः आपको जो कुछ उपदेश देना हो वह दीजिये।' आचार्य बोले, 'वंकचूल! तेरी इच्छा हो और तुझे ठीक लगे तो हमारे मिलाप की स्मृति के निमित्त मैं तुम्हें कुछ नियम देना चाहता हूँ।' _ 'सहर्ष दीजिये, परन्तु आप मेरी स्थिति का ध्यान रखना । मैं चोरी करना बन्द नहीं कम्पा और चोरी करने में मुझसे हिंमा रुक नहीं सकती। आप तो जैन माध R . SEVAR . :25 गीता आचार्य भगवत, वंकचूल में बोले तेरे आत्मकल्याण के लिए तू पालन कर मकै बम नियम देना चाहता हूँ . “वंकल ने दोनों हाथ जोड़कर कहा स्वीकारता हूँ" आपका उपकार कभी नहीं भूलूंगा.
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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