SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ (३) राजा चन्दन उस वणिक् के घर पूजा-विधि सम्पन्न करके रात को जब कुटिया में लौटा तो सायर एवं नीर दोनों सिसक-सिसक कर रो रहे थे। चन्दन ने उनके आँसू पोंछे और कहा, 'पुत्र क्यों रो रहे हो? तुम्हारी माता कहाँ गई?' बालकों ने कहा, 'कौन जाने अभी तक क्यों नहीं आई? हमने उनकी बहुत प्रतीक्षा की परन्तु वह दृष्टिगोचर ही नहीं हुई।' - चन्दन कुटिया से बाहर, इधर-उधर घूमा। जो भी कोई मिलता उसे पूछता, 'किसी ने देखा है लकडियाँ बेचने वाली मलयागिरि को?' किसी ने इनकार किया तो किसी ने कोई उत्तर ही नहीं दिया। चन्दन ने मन को स्थिर किया और सोचा कि, 'यदि मैं मस्तिष्क का सन्तुलन खो दूंगा तो इन दोनों बालकों का क्या होगा?' __कुटिया पर आकर दोनों पुत्रों को लेकर चन्दन कुशस्थल छोड़कर चला गया। गाँव के बाहर वन-निकुञ्ज के उद्यान में जो कोई मिलता उन सबको यही पूछता कि, 'किसी ने देखा है मेरी मलयागिरि को?' पशुओं, पक्षियों वन के वृक्षों तथा सरसराती वायु को सबको चन्दन पृछता कि, 'बताओ, बताओ उस कटियारिन मलयागिरि को!' परन्तु कहीं से भी उसे कोई उत्तर नहीं मिला। कभी दौड़ता, कभी विश्राम लेता और निःश्वास छोड़ता हुआ स्थान-स्थान पर ठोकरें खाता हुआ चन्दन बननिकुज में और मार्ग में 'हे मलयागिरि! हे मलयागिरि! करता हुआ उसे पुकारता और मस्तिष्क का सन्तुलन खोने जैसा हो जाता तब सायर और नीर कहते, 'पिताजी! भूख लगी है', चन्दन उन्हें वन के फल और पत्ते खिलाता और स्वयं भी उसी प्रकार निर्वाह करता। मार्ग में कल-कल करती नदी बह रही थी। चन्दन ने इस किनारे पर सायर को खड़ा कर दिया और नीर को अपने सिर पर बिठा कर नदी पार की और उसे सामने के तट पर खड़ा कर दिया। लौटते समय नदी की गति तीव्र हो गई चन्दन की देह शोक, भूख और कष्टों के कारण शिथिलता का अनुभव कर रही थी। उसने पाँव जमाने का अत्यन्त प्रयास किया परन्तु नदी के वेग के कारण पाँव जम नहीं सके । उसने नदी में वहते-बहते 'बेटा सायर! बेटा नीर!' कह कर उन्हें पुकारा परन्तु उसकी पुकार नदी के प्रवाह की ध्वनि में समा गई । वह डूबता-उतराता बहता रहा । उसने एक-दो गुलांछे भी खाई। इतने में एक लकड़ी चन्दन के हाथ में आ गई। ऊपर-नीचे होती लकड़ी आनन्दपुर नगर के बाहर छिछले पानी में रुकी और चन्दन भी वहीं रुक गया। नदी से बाहर निकलते समय वह बोला - 'कहाँ चन्दन? कहाँ मलयागिरि? कहाँ सायर? कहाँ नीर??"
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy