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________________ अडिग धैर्य के स्वामी अर्थात् गजसुकुमाल मुनि मरणान्त उपसर्ग देकर सिद्धि प्रदान कराई है। देवकी का छोटा पुत्र समस्त पुत्रों से पूर्व मोक्ष में गया और इस प्रकार वह सचमुच सबसे महान् बन गया। __ भगवान को वन्दन करके श्रीकृष्ण स्मशान की ओर गये। वहाँ नगर में प्रविष्ट होता हुआ सोम शर्मा सामने मिला | श्रीकृष्ण को देख कर भय से काँपता हुआ वह वहीं पर ढेर हो गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण का क्रोध शान्त हुआ। गजसुकुमाल के इस प्रसंग के पश्चात् शिवादेवी, भगवान के भाइ, श्री कृष्ण के पुत्र आदि अनेक यादवों ने दीक्षा ग्रहण की और अपना आत्म-कल्याण किया। इस प्रकार यह महापुरुष मरणान्त उपप्तर्ग सह कर अपनी आत्म-साधना के साथ-साथ अनेक व्यक्तियों की आत्म-साधना के निमित्त वने । गजसुकुमाल मुगते गया रे लोल, चंदु वारंवार रे। मन थिर राख्यु आपणुं रे लोल, पाम्या भवनो पार रे ।। (उपदेशमाला से)
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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