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वह प्रकाश के आधार पर सफल होगा। भुवनदीप नवकार! तुम्हारा स्मरण, जाप और ध्यान स्वरूप बुध, गुरु और शुक्र ताराओं के प्रकाश में ही मेरा प्रयाण है। और निस्संदेह स्नेहपूर्वक वे मुझे तुम्हारी छत्रछाया में पहुँचा देंगे।
६१. पूर्णिमा
पूर्ण प्रकाश नवकार ! नम की तारों भरी रात में, चन्द्र को देखकर विचार आया। जो कुछ होना था हो गया। मेरी यात्रा की भी अव पूर्णिमा होने आई।
अन्तिम पड़ाव आ गया, मैं परवान चढ गया। मुझे प्रतीति हुई कि आगे अब मार्ग नहीं । मैं मेरी मंजिल तक आ चुका हूँ। अब और प्रयास का प्रयोजन नहीं रहा, भत्ता....पाथेय भी समाप्त हो गया है। समय निकट है। बस, अब तो थके पके जीवन को आराम मिले! इस जीर्ण-शीर्ण, फटे-ट्ट, चीथडे जैसे शरीर से आगे वढना भी किस प्रकार संभव है ?
हे नवकार महान
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