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परन्तु मैं देखता हूँ कि, तुम्हारी लीला का कोई वारापार नहीं। वह अपरम्पार है। तुम मेरे काया वस्त्र बदल दोगे! मेरी यात्रा पुनः स्नेह आनंद के साथ कुलाछे भरती वेगवती बन उठेगी ! शीतल और मधुर बनेगी, परन्तु तब भी उसकी पूर्णता नहीं होगी ! !
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६२. अस्पर्शनीय
स्पर्शनातीत प्रभो नवकार ! मेरा अंग अंग सुकोमल स्पर्श की भावना से भरा पडा है। उसे मुलायम, महीन... मृदु वस्त्र चाहिए, रेशम से भी बढकर मिल जाएँ तो आनन्द ही आनन्द है। उसे सोने के लिए सुन्दर पलंग का मुलायम मखमल के गद्दे रजाई जिक तकिया और गलीचा चाहिए। तिस पर सुकोमल और स्वच्छ चादर बा ढंकी हुई हो, ऊपर थोडे पुष्प बिछाये हुए हो तो अति उत्तम । श्री प्राणी को अन्य, सुकोमल और सुखदाई कर पदार्थ अति प्रिय मालूम होते हैं । बाजागा
हे नवकार महान
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