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निवेदन
अभी दस माह पूर्व की बात है । मातृभूमि कालन्द्री के नूतन मन्दिर की अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा महोत्सव की पूर्णाहूति के पश्चात् व्यावसायिक कार्य निमित्त नागौर जाना हुआ। पूज्य गरुदेव आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा उक्त समय वहीं थे । अतः उनके वंदनार्थ एवं आशीर्वाद प्राप्ति हेतु अनायास पहुँच गया।
आपके दर्शन हुए। जीवन धन्य हो गया। मैंने विनीत भाव से पूछा : 'कोई आज्ञा गुरुदेव ?' आचार्यदेव कुछ क्षणों के लिए मौन हो गये। और तब उन्होंने एक पुस्तिका हाथ में थमाते हुए कहा : 'यदि संभव हो तो इसे आदि से अंततक देख जाना और इसमें आवश्यक संशोधन, सूत्रों का संकलन तथा भाषा की दृष्टि से परिसंस्कार करने हो तो कर लेना । इसकी नई आवृत्ति प्रकाशित करनी है।' ___ तदनुसार मैंने इसे आवश्यक संशोधन, सूत्रों का संकलन और भाषा की दष्टि से समचित परिसंस्कार के माध्यम से सँवार ने का प्रयत्न किया है। यह सब करते हुए मूल पुस्तक 'स्नेहाज्जलि'
पाँच
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