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साथ ही उक्त क्रीडांगणों को नेत्रों से देखकर जी भरकर सौंदर्य का पान किया और मैं धन्य बना ।
तेरा स्पर्श असम्भावित है, तो भी मेरी नस नस पुलकित हो उठी हैं । अतः मैं धन्य बना हूँ । तेरी मधुर व मंजुल पुकार सुनकर मेरे कर्णयुगल सुधावाणी रस के स्वादु हो गये है । अतः मैं धन्य बना हूँ ।
तेरे स्पर्श को आँचल में संजोकर प्रवाहित वायु ने मेरी नासिका को प्राणवायु
प्रदान किया है और मैं धन्य बना हूँ
अतः मैंने जो देखा है और अनुभव किया है-'
वह अनुपमेय है, अतुल्य है !
विदाई के दिन मैं यही घोषित करता हूँ ! और यही मेरी विदाई के अंतिम शब्द हैं ! !
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२२. मृत्यु के बाद
तेरे गीत गाते गाते यह प्राण चले जाये तो कितना अच्छा !
मैं अपने इष्ट मित्र और सगे-संबंधियों को
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बालमित्र नवकार
!
हे नवकार महान