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उसका मुझे पूरा भय है। वे आत्मा और मन के द्वार बंद कर देंगे। यदि पराजय स्वीकार न करूँ तो ज्यादा जकडेंगे। ऐसे में ओ समाधिमरण ! आप आओगे तोसभी विघ्न दूर हो जायेंगे । नवकार ! आप आओगे तोसभी बन्धन शिथिल हो जायेंगे । आपके आते ही मुझे कैद रखने में भला कौन समर्थ है ? जब मेरे हृदय में आपका आगमन होगा तब मेरा हृदय स्वतः निःशब्द हो जायेगा। पूर्ण शान्ति या पूर्ण प्रकाश ! !
२१. विदाई के समय
वरेण्य शरण्य नवकार !
जाने के दिन मैं यह बात कहता जाता है कि मैंने जो कुछ देखा, जाना उसकी कोई उपमा मेरे पास नहीं थी। तेरे प्रकाशमय सरोवर के कमलपुष्प के मधुर मधु को पान कर में धन्य बना हूँ। विश्व के क्रीडांगण में मैंने अनेक खेल खेले हैं।
हे नवकार महान
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