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-गुरुवाणी
भव परम्परा से मुझे मुक्त कर. वहां मुक्त होने की उत्कण्ठा थी अन्दर की भावना थी और हमारी आदत ऐसी है, बार-बार संसार में आओ, समृद्धि मिले, जगत् मिले, यह जगत् कहां तक आपका रक्षण करेगा. यह जगत् आज तक किसी का रक्षण करने वाला नहीं बना, निरपेक्ष है, आपके साथ इसकी कोई अपेक्षा नहीं है. परन्तु हमारा प्रयास वही रहा. ___ लोग पूछने के लिए प्रश्न पूछ लिया करते हैं. बहुत-से व्यक्तियों की आदत है. हमारी मनोदशा समाज को प्रभावित करने की रहती है. ज्ञानी देखकर आत्मा और परमात्मा के विषय में बहुत चर्चा, किन्तु प्रश्न के अन्दर प्राण नहीं होता, गहराई नहीं होती और उन प्रश्नों के अन्दर अन्तर की प्यास नज़र नहीं आती. अन्तर की जिज्ञासा उनके अन्दर चाहिए, तब प्राण आए. बौद्धिक प्रदर्शन के लिए भी कई बार प्रश्न पूछा जाता है कि मैं बड़ा ज्ञानी हं. याद रहे, यदि प्रश्न उधार है, सुना, सुनाया या कहीं से पढ़ करके प्रश्न उपजा है, तो जवाब सन्तोष-प्रद नहीं होगा. सन्तोष-पूर्वक जवाब तभी मिल पाएगा, जब प्रश्न स्वयं के अन्तस् की गहराई से प्रस्फुटित हुआ हो. अन्तश्चेतना के तारों की झनझनाहट से जिसका आविर्भाव हुआ हो.
प्रोफेसर चन्दूलाल की आदत थी कि वे हमेशा प्रश्न करते. आप जानते हैं, ज्यादातर दार्शनिक विक्षिप्त होते हैं, उनका पूछने का तरीका बड़ा विचित्र होता है क्योंकि वे अपनी धुन में ही रहते हैं. एक दिन कालेज में गये और अपने विद्यार्थियों से प्रश्न कर लिया कि मेरे अन्दर एक मानसिक उलझन है और मैं चाहता हूं कि तुम में से उसका कोई उत्तर दे तो मुझे बड़ा आत्म-संतोष मिलेगा. एक तीक्ष्ण बुद्धि वाले लड़के ने कहा, साहब प्रश्न करिए. जवाब मैं दूंगा. आज कल के लड़के बड़े चतुर होते हैं. बुद्धि का अतिरेक भी कई बार सर्वनाश का कारण बनता है. ___ कलकत्ता में एक पढ़ा-लिखा बड़ा होशियार लड़का था. एक दिन ग्रैण्ड होटल के "नो पार्किंग” की जगह अपनी गाड़ी खड़ी करके सुबह-सुबह अपने काम पर निकल गया. काम करके लौटा तो देखता है गाड़ी के पास पुलिस खड़ी है, उसे अपनी गलती का आभास हुआ. मन में विचार किया – अगर गाड़ी के पास जाता हूं तो कम से कम सौ रुपया तो गुप्तदान देना ही पड़ेगा. गुप्तदान देने को मन नहीं था.
बुद्धि दौड़ाई, दस रुपये दिए और टैक्सी से घर पहुंच गया लाल बाजार पुलिस स्टेशन को टेलीफोन घुमाया कि इस नम्बर और इस रंग की गाड़ी घर से गुम हो गई. पता नहीं घर से कौन ले गया कहां चली गई? मन में निश्चिन्त था बिना पैसे का चौकीदार खड़ा है, चिन्ता है ही नहीं. गाड़ी के पास पुलिस खड़ी थी. गाड़ी को कोई खतरा है ही नहीं. उसके फोन करने के बाद पूरे कलकत्ते में वायरलैस (बेतार का तार) से समाचार पहुँच गया. वहां जितने भी चैक पोस्ट थे उन पर समाचार चला गया अब घूमते-फिरते घंटे-दो घंटे में जब पुलिस की गाड़ी वहां आई और देखा कि गाड़ी तो यही है. गाड़ी का नम्बर भी यही है. कलर भी यही है. मॉडल भी यही है. जाकर देखा, पुलिस वाला बेचारा एक
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