SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: कहां तक लोगों में यह प्रदर्शन करेंगे. यदि आप दिखाने की भावना रखते हैं, तो स्वयं का देखना ही बंद हो जाएगा. आत्मा की अनुभूति आप नहीं कर पायेंगे. इसमें बड़ी गोपनीयता चाहिए, तब वह पूंजी सुरक्षित रहती है. यह घर की पूंजी है. वह बताने के लिए नहीं होती. आत्म- संतोष के लिए चित्त की समाधि के लिए, आत्मा की भावना को तृप्त करने के लिए यह धर्मक्रिया होती हैं. आत्मा की प्यास बुझाने के लिए करते हैं. परोपकार जगत् में सबसे बड़ा धर्म माना गया है. चाहे वह किसी भी प्रकार का हो. महावीर की भाषा में "जो व्यक्ति गरीब की, निर्धन की, दीन और दुःखी की सेवा करते हैं, वे मेरी सेवा करते हैं. यह परमात्मा की सेवा है, और सेवा के कार्य में आगे बढ़ना है, यह लक्ष्य ले करके चलना है. हमारा कोई लक्ष्य नहीं, और यदि आपने सोचा हो, तो मुझे बता दीजिए. मकान बनाते हैं, तो पहले इंजीनियर से योजना तैयार करायी जाती उसके बाद मकान का निर्माण किया जाता है. जीवन की योजना कभी आपने बनायी ? कभी आपने ऐसे साधु-संतों, गुरुजनों से मार्गदर्शन लिया कि मुझे अपने जीवन की योजना चाहिए, किस प्रकार मैं अपने जीवन का निर्माण करूं, ताकि साधना की सर्वोच्च भूमिका को मैं पा सकूं? मैं अपनी आत्मा को पा सकूं? कभी हमारा यह लक्ष्य नहीं रहा. मानसिक दरिद्रता ले करके गये, कुछ मिल जाये. जहां मार्गदर्शन लेना था, याचना करने लग गये कि आशीर्वाद मिल जाये, कुछ जगत् की प्राप्ति हो जाये, कुछ भौतिक दृष्टि से प्राप्त हो जाये. कोई अन्तस्तल की प्यास ले करके कभी किसी साधु संत के पास नहीं गया. जगत् की याचना और दरिद्रता ही ले करके गये. क्या मिलेगा ? जो प्रारब्ध में है, वही प्राप्त होगा. प्रारब्ध के सिवाय तो प्राप्ति होने वाली नहीं, चाहे आप कितना भी प्रयास कर लें. लक्ष्य से भ्रष्ट होने का यह परिणाम • व्यक्ति दरिद्र बनता है जगत् की याचना के लिए अपनी आत्मा के सारे गुणों को नष्ट कर देता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आज तक हमारा यही लक्ष्य रहा कि जगत् को प्राप्त करें. यह लक्ष्य कभी नहीं सूझा कि स्वयं को प्राप्त करें. यह हमारे संसार की यात्रा है. यह मोक्ष की यात्रा नहीं है. यह धर्म यात्रा नहीं है. आत्मा को संसार की यात्रा में कभी पूर्णविराम प्राप्त ही नहीं होता और मोक्ष की यात्रा में आत्मा को पूर्ण विश्राम मिलता है, जीवन का पूर्णविराम प्राप्त होता है. और यह बार-बार का आना-जाना, शंकराचार्य जी की भाषा में कहा जाये जैसा उन्होंने कहा: पुनरपि जननं पुनरपि मरणम्, पुनरपि जननी जठरे शयनं. बड़ा सुन्दर भाव उन्होंने प्रगट किया. विरक्त भावना को प्रगट करने के लिए चर्पट मंजरी में भगवान से प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहा कि भगवन् कहां तक संसार में जन्मता-मरता रहूँगा. बार-बार मां के गर्भ में आना और जन्म लेना, मृत्यु प्राप्त करना इस 66 For Private And Personal Use Only R
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy