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-साऊत-तपाणा
प्रकाशकीय...
मंत्र और सूत्र परम लघु होते हैं किन्तु होते हैं वे परम प्रभावकारी. आज इन दोनों के सम्बन्ध में एक दीवार यह खिंच गई है कि मंत्रों की क्रियाएँ और सूत्रों की व्याख्याये दुर्बोध होती जा रही हैं. जहाँ तक सूत्र ग्रन्थों का प्रश्न है, उनका विस्तार और उनकी व्यापकता केवल-प्रतीक के तौर पर आदर्श वचनों या सिद्धान्तों के रूप में सिमट कर रह गई है. जिस तरह किसी निबन्ध का शीर्षक बता देने से निबन्ध पूरा नहीं हो जाता, उसके लिए विषय की पूरी परिधि तक जाना पड़ता है, इसी प्रकार सूत्रों की सार्थकता उनकी व्याख्या पर निर्भर है. सोने चाँदी की दुकान का साइन बोर्ड पढ़ लेने से ग्राहक का काम नहीं चलता उसके लिए तो उसके अधिकृत स्वामी और उसकी ताली की आवश्यकता पड़ती है जो उसे खोल कर ग्राहक को एक एक करके दिखला दे.
गुरु भगवन्त आचार्य हरिभद्र सूरि का 'धर्मबिन्दु' एक ऐसा ही जौहरी की जवाहरातों से भरा हुआ सूत्र ग्रन्थ है जिसकी व्याख्या रूपी चाभी के अधिकारी राष्ट्रसंत, परम प्रभावक जैनाचार्य पूज्य पाद पद्मसागर सूरीश्वर जी महाराज हैं. संसार की सभी धार्मिक परम्पराओं में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है. 'धर्मबिन्दु' पूर्ववर्ती आचार्य गुरु का सूत्र-ग्रन्थ है. इसलिए ग्रन्थ का नामकरण 'गुरुवाणी' के रूप में किया गया है, जो अपने पूर्वाचार्यों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का परिचायक है.
ग्रन्थ के विषय में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं. यह एक दर्पण हैं इसमें झाँक कर देख लीजिए इसमें आप की अन्तरात्मा की झलक मिलेगी क्योंकि प्रौढ़ प्रज्ञा के धनी आचार्य भगवन्त ने साधारण से साधारण विषयों को भी अनेकान्त दृष्टि से स्पष्ट किया है. विविध रूपकों, दृष्टान्तों, लौकिक और शास्त्रीय आख्यायिकाओं और उपाख्यानों द्वारा सरल, संवेदन शील और व्यंग्यात्मक शैली में की गई यह व्याख्या मात्र व्याख्या ही नहीं एक स्वतंत्र प्रणयन है. इसे आप पढ़ना आरम्भ करेंगे तो एक सांस में पढ़ लेना चाहेंगे. इसे आप बार बार पढ़ेंगे और जीवन भर अनुचिन्तन करेंगे क्योंकि यह कोई सामान्य पुरतक या वाणी नहीं है. यह एक वाड्.मय रूपी औषधि है जो भव के प्रहार से घायल हमारे आप के घावों को भरने में समर्थ है. गणिवर्य श्रद्धेय देवेन्द्र सागर महाराज ने इसका कौशल पूर्ण संकलन और संपादन करके तथा इसका उत्तम और सुरपष्ट रूप से मुद्रण करके हमारा बड़ा उपकार किया है.'
इस पुस्तक के मुद्रक-इम्प्रेस ऑफसेट, नोयडा के श्री साकेत प्रकाश एवं सिद्धार्थ प्रकाश के अत्यन्त आभारी है जिनकं अनथक प्रयत्नों से यह ग्रन्थ मोहक स्वरूप में आपके सम्मुख प्रस्तुत हो सका.
इसके प्रकाशन के लिए अष्ट मंगल फाउन्डेशन अपने को धन्य मानता है. फाउन्डेशन धर्म प्राण, परम उदार स्वनाम धन्य श्रावकों के भी आभारी है जिनके आर्थिक सहयोग से ग्रन्थ ने आकार ग्रहण किया. ____ आचार्य भगवन्त की प्रेरक, प्रभावक और उद्धारक वाणी जगत के जीवों का सतत कल्याण करती रहे और हम संसारी जीवन अपने कषायों से मुक्त होते रहें भावी प्रतीक्षा के साथ :
अष्ट मंगल फाउन्डेशन
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