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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी पार्वती ने पहले उसकी स्त्री को बुलाया और बुला कर कहा -- मांग तुझे क्या चाहिए. साक्षात् शंकर हैं, मांग वरदान. स्त्री ने विचार किया, मांगू तो, रिटेल में क्यों मांगू होल सेल में ही मांग जब साक्षात् भगवान शंकर मिल गए तो कमी क्या रखनी. उसने कहा "मुझे किसी करोड़पति की औरत बना दीजिए. यहां तो खाने का पता नहीं, पीने का पता नहीं, पहनने का ठिकाना नहीं. जब से शादी हुई बड़ी दुर्दशा है. मौत को ले करके जी रही हूं भगवन! ऐसा वरदान दीजिए कि दिल्ली के सबसे बड़े श्रीमंत के यहां जाकर, मैं उसकी स्त्री बनूं और रानी की तरह से रहूं" "तथाऽस्तु" वरदान फलीभूत हुआ. देवकृत माया, शरीर के अन्दर रूपांतर हो गया. कपड़े सुन्दर पहन लिए, आभूषण से एकदम सज्जित हो गई. चेहरा आदि सब एकदम बदल गया. भाव-भंगिमाएं सब बदल गयीं. __वह पति पास में खड़ा हुआ देख रहा. ईर्ष्या की आग में उसका मन जल रहा है कि मुझे छोड़ कर चली गई, अब मेरी सेवा कौन करेगा? इस बच्ची का लालन-पालन कैसे किया जायेगा. मन में ईर्ष्या की आग, मुझे छोड़ करके क्यों गई? अब वह गुस्सा उसके अन्दर - दुर्बल व्यक्तियों को गुस्सा ज्यादा आता है. चाहे वह मानसिक दुर्बलता हो या शारीरिक दुर्बलता, यह एक स्वभाव है. शंकर जी ने उसे बुलाया, बेटा इधर आ, मांग तुझे क्या चाहिए, ले तुझे वरदान दूं भगवन्! मुझे कुछ वरदान नहीं चाहिए, आवेश में था, उबलते हुए पानी में चेहरा नहीं दीखता. जब जीवन क्रोध से उबलता हुआ होता है, तो वहां आत्मा की अनुभूति नहीं होती, वहां यह प्रतिबिम्ब नज़र नहीं आता कि मैं कौन हूं और क्या कर रहा हूं? विवेक का भान नहीं रहता. आवेश में कह दिया भगवान इसे कुतिया बना दीजिए, इसे सजा मिलनी चाहिए क्योंकि यह मुझे छोड़ करके चली गई. "तथाऽस्तु" दूसरा वरदान मिल गया. वह रानी से कुतिया हो गई. बड़ी दयनीय दशा, देख करके इंसान को दया आ जाय. बच्ची पास में बैठी थी. मां की दशा देख कर शंकर जी के चरणों में गिरी. भगवान शंकर ने कहा, बेटी तू भी मांग तुझे क्या चाहिए. बच्ची कहती है - भगवन् मुझे कुछ नहीं चाहिए. मुझे मेरी मां चाहिए, जैसी थी वैसी ही मेरी मां, मुझे मिल जाए वह बस. "तथाऽस्तु" वह जैसी थी वैसी ही हो गई. 59 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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